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डीबी न्यूज़ के साथ महिलाओं की उद्यमिता यात्रा : सशक्तिकरण और प्रेरणा का संदेश, उद्यमियों के रूप में महिलाओं की बढ़ती उपस्थिति के कारण देश महत्वपूर्ण व्यवसाय और आर्थिक विकास की ओर..

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नई दिल्ली। देश में एंटरप्रेन्योर महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो न सिर्फ खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बना रही हैं, बल्कि समाज में परिवर्तन का प्रतीक भी बन रही हैं। अपने समर्पण और मेहनत से ये महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में नए मुकाम हासिल कर रही हैं। चाहे वह ग्रामीण स्तर हो या अंतरराष्ट्रीय मंच, इन महिलाओं ने अपने व्यवसायों के माध्यम से न केवल अपनी पहचान स्थापित की है, बल्कि कई अन्य महिलाओं को भी प्रेरित किया है। डीबी न्यूज़ नेटवर्क के साथ हुई बातचीत में इन एंटरप्रेन्योर महिलाओं ने अपनी बिजनेस यात्रा और संघर्ष की कहानी साझा की, साथ ही अन्य महिलाओं को सशक्त बनने का संदेश दिया।

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उत्तराखंड के मुक्तेश्वर में बसे “कैफे आवारा” की संस्थापक निकिता शर्मा ने अपने बेटे को शुद्ध वातावरण में बड़ा करने के उद्देश्य से इस पहाड़ी शहर में शिफ्ट होने का फैसला किया। इसी निर्णय से प्रेरित होकर उन्होंने एक पिज्जेरिया खोलने का विचार किया, जो बाद में “कैफे आवारा” के रूप में सफल हुआ। पिज्जा के प्रति उनके प्रेम और इटली के पारंपरिक स्वाद को मुक्तेश्वर में लाने की उनकी कोशिशों ने कैफे को विशिष्ट पहचान दिलाई।

निकिता ने पिज़्ज़ा बनाने की प्रक्रिया में गुणवत्ता और ताजगी पर विशेष ध्यान दिया। उनके कैफे में पिज़्ज़ा का आटा 30 से 40 घंटे तक तैयार किया जाता है, ताकि यह हल्का और स्वास्थ्यवर्धक हो सके। इसके अलावा, वे अपनी खुद की फार्म से ताजे और प्राकृतिक उत्पादों का उपयोग करती हैं। हालांकि, पहाड़ी इलाके में पानी की कमी और भूस्खलन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन इन बाधाओं के बावजूद उनका कैफे उम्मीद से कहीं अधिक सफल साबित हुआ।

निकिता का अनुभव यह दर्शाता है कि पहाड़ों की कठिनाइयों के बावजूद, यदि किसी काम को समर्पण और जुनून के साथ किया जाए, तो सफलता अवश्य मिलती है। उनका सफर यह सिखाता है कि चुनौतियों के बावजूद निरंतर प्रयास और समुदाय के साथ सामंजस्य बिठाने से व्यवसायिक सफलता हासिल की जा सकती है।

मध्यप्रदेश के ग्वालियर की उद्यमी वंदना जग्गी ने अपने स्टार्टअप और उसमें आने वाली चुनौतियों पर खुलकर चर्चा की। तीन साल पहले घर से अपने मसालों के व्यापार की शुरुआत करने वाली वंदना ने बताया कि शादी के बाद विभिन्न शहरों में रहने के कारण अपने करियर की शुरुआत नहीं कर पाईं। लेकिन समय के साथ उन्होंने महसूस किया कि किसी भी काम की शुरुआत के लिए कोई तय उम्र या समय नहीं होता, बस सही अवसर का इंतजार होता है।

व्यक्तिगत चुनौतियों के बारे में बात करते हुए, वंदना ने डिप्रेशन और पैनिक अटैक्स का सामना करने का अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि आलोचनाओं से उन्होंने खुद को प्रेरित किया और अपने व्यवसाय में सफलता पाई। कोविड-19 के दौरान उनके चाय मसाले को खासा लोकप्रियता मिली, और उन्होंने फ्री में लोगों को मसाले और खाना सप्लाई करना शुरू किया, जिससे उनकी पहचान दिल्ली, कोलकाता, उदयपुर से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाइजीरिया और कनाडा तक पहुंच गई।

वंदना का उद्देश्य शुद्ध और बिना प्रिजर्वेटिव के मसाले उपलब्ध कराना है, जिससे उनके उत्पाद 6 से 8 महीने तक ताजगी बनाए रखते हैं। उनका यह अनुभव दिखाता है कि किसी भी काम को ईमानदारी और समर्पण से किया जाए तो सफलता निश्चित रूप से मिलती है, चाहे रास्ते में कितनी भी चुनौतियाँ क्यों न आएं।

न्यूजीलैंड से उद्यमी प्राजिता सरकारी ने अपनी उद्यमिता यात्रा के बारे में चर्चा की, जो अक्टूबर 2022 में शुरू हुई थी। उन्होंने भारतीय हस्तनिर्मित सहायक उपकरणों की कमी को एक अवसर के रूप में देखा और इसे न्यूज़ीलैंड के बाज़ार में लाने का फैसला किया। उन्होंने कहा, “किफायती विकल्पों की कमी को देखते हुए, मैंने भारतीय हस्तनिर्मित सहायक उपकरणों को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से बेचने की योजना बनाई।”

प्राजिता ने अपनी शुरुआत में जिन चुनौतियों का सामना किया, उन पर बात करते हुए बताया कि भारत से न्यूज़ीलैंड में उत्पादों का आयात करना एक कठिन प्रक्रिया थी, खासकर तब जब उन्हें इन प्रक्रियाओं का कोई अनुभव नहीं था। “इन प्रक्रियाओं को समझने और आवश्यक जानकारी हासिल करने में समय लगा, लेकिन अंततः मैं न्यूज़ीलैंड के बाज़ार की ज़रूरतों को समझने में सफल रही,” उन्होंने कहा।

प्राजिता ने गर्व के साथ बताया कि वह भारतीय कारीगरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करने और उनके शिल्प को बढ़ावा देने में सक्षम हो पाई हैं। भविष्य की योजनाओं पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, “न्यूज़ीलैंड के बाद, मैं ऑस्ट्रेलिया में भी अपने बिज़नेस का विस्तार करना चाहती हूँ।” प्राजिता के अनुसार, दृढ़ता और समर्पण ही किसी भी व्यवसाय की सफलता की कुंजी हैं, जो सभी चुनौतियों का सामना करने में मदद करते हैं।

मध्यप्रदेश के ग्वालियर से रितिका अग्रवाल ने अपने बेकिंग के शौक को प्रोफेशनल रूप में बदलते हुए एक सफल स्टार्टअप “Ritikas Cakes” की शुरुआत की। रितिका का बेकिंग का सफर बचपन से ही शुरू हुआ, जब वह 10 साल की उम्र में अपने परिवार और दोस्तों के लिए केक और पेस्ट्री बनाती थीं। कोविड-19 के दौरान, जब लॉकडाउन में लोगों को घर से केक मंगवाने की आवश्यकता पड़ी, रितिका ने अपने दोस्तों के कहने पर ऑर्डर लेना शुरू किया और इस तरह उनकी होम-बेकरी की शुरुआत हुई।

रितिका ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया, “कोविड के समय में ऑर्डर्स मिलने लगे, तब मैंने ऑनलाइन क्लासेज भी शुरू कीं। मैंने चॉकलेट और केक की बेकिंग सिखाने के लिए सोशल मीडिया और विभिन्न क्लब्स का सहारा लिया। मेरे बिजनेस का प्रचार मुख्य रूप से मुंह जुबानी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिए हुआ, जिससे मुझे काफी ऑर्डर्स मिले।”

आज “Ritikas Cakes” न केवल ग्वालियर में, बल्कि अन्य शहरों में भी लोकप्रिय हो रहा है। रितिका का सपना है कि उनका बेकरी स्टार्टअप बेरोजगार महिलाओं को रोजगार का अवसर प्रदान करे और भविष्य में इसे फ्रैंचाइज़ी मॉडल में बदलते हुए अन्य शहरों में भी विस्तार करे। उनका दृढ़ विश्वास है कि अपने शौक को व्यवसाय में बदलकर वह न सिर्फ अपनी सफलता हासिल कर रही हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी रोजगार के अवसर उत्पन्न कर रही हैं।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की रेणु अदलखा ने अपनी उद्यमिता यात्रा की शुरुआत तब की जब उन्होंने महिलाओं के लिए “गर्ल्स हाइव फिटनेस हब” की स्थापना की। शादी और बच्चों के बाद अपने शरीर की उपेक्षा करने के परिणामस्वरूप रेणु को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा। इन चुनौतियों से गुजरने के बाद, उन्होंने फिटनेस पर ध्यान केंद्रित किया और खुद को स्वस्थ करने के लिए प्रेरित किया। अपने फिटनेस अनुभव के दौरान, उन्होंने महसूस किया कि कई अन्य महिलाएं भी इसी तरह की समस्याओं से जूझ रही थीं, जिसके बाद उन्होंने महिलाओं के लिए फिटनेस कोच बनने का निर्णय लिया।

रेणु ने बताया कि उनका परिवार, विशेष रूप से उनके पति और सास, इस यात्रा में उनके सबसे बड़े समर्थक रहे। उनके पति ने उन्हें फिटनेस सेंटर जॉइन करने के लिए प्रोत्साहित किया, और उनके सास-ससुर ने घर की जिम्मेदारियाँ संभालने में मदद की। रेणु ने 2017 में ज़ुम्बा और पावर योगा की ट्रेनिंग लेकर महिलाओं को फिटनेस सिखाने की शुरुआत की। शुरुआत में उन्होंने दो साल तक फ्रीलांसिंग की, लेकिन बाद में 2019 में उन्होंने अपना खुद का फिटनेस स्टूडियो “गर्ल्स हाइव फिटनेस हब” लॉन्च किया।

रेणु का मानना है कि फिटनेस को फन के साथ जोड़कर ही महिलाएँ इसे लंबे समय तक जारी रख सकती हैं। उनकी ट्रेनिंग में योगा, ज़ुम्बा, और अन्य फिटनेस वर्कआउट्स को म्यूजिक और विभिन्न वेरिएशंस के साथ पेश किया जाता है। रेणु की यह यात्रा साबित करती है कि परिवार के सहयोग और दृढ़ संकल्प से कोई भी महिला अपने जीवन की चुनौतियों से पार पा सकती है और अपने सपनों को साकार कर सकती है।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की ऋचा दीक्षित तिवारी, श्री समारंभ इवेंट और वेडिंग प्लानर्स की संस्थापक, ने अपने 8-10 साल के कॉर्पोरेट करियर के बाद अपनी खुद की कंपनी शुरू करने का फैसला लिया। शादी और बच्चों के बाद, उन्होंने महसूस किया कि कॉर्पोरेट नौकरी के तनाव और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते वे अपनी व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में संतुलन नहीं बना पा रहीं थी। अपनी बेटी के जन्म के बाद, ऋचा ने अपने जुनून को व्यवसाय में बदलने का निर्णय लिया और इवेंट मैनेजमेंट कंपनी की शुरुआत की, ताकि वे अपनी प्रोफेशनल आकांक्षाओं के साथ घर की जिम्मेदारियों को भी संभाल सकें।

शुरुआत में परिवार ने उनके निर्णय पर सवाल उठाए, खासकर एक महिला होने के नाते, जब उन्होंने तीन पुरुष पार्टनर्स के साथ काम करने का फैसला किया। हालांकि, ऋचा ने अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ संकल्प बनाए रखा और अपनी मेहनत और कस्टमर्स के बेहतरीन रेस्पॉन्स के कारण धीरे-धीरे व्यवसाय को बढ़ाया। आज उनकी कंपनी छोटे-छोटे इवेंट्स से शुरू होकर भोपाल और मध्य प्रदेश में एक सफल इवेंट प्लानिंग और वेडिंग मैनेजमेंट कंपनी बन गई है, जो देशभर में अपनी सेवाएं देने की योजना बना रही है।

ऋचा के समर्पण और दृढ़ संकल्प ने न केवल उनके व्यवसाय को सफलता दिलाई, बल्कि उनके परिवार और समाज में भी उनकी पहचान को सशक्त किया। वह अपने अनुभव से कहती हैं कि जब परिवार और समाज शुरू में चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं, तो आपकी खुद की प्रतिबद्धता और आत्मविश्वास ही आपको आगे बढ़ने में मदद करता है।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

जब पेरेंट्स अपने बच्चों को प्राइमरी स्कूल भेजते हैं, तो उनकी प्राथमिक अपेक्षा होती है कि बच्चों को मजेदार तरीके से सीखने का अवसर मिले। छोटे बच्चों का दिमाग पहले आनंद लेना चाहता है। अगर उन्हें मजा नहीं आएगा, तो वे आगे नहीं बढ़ेंगे। हर बच्चे के अंदर प्रतिभा होती है, जरूरी है हम उसे समझें।

बच्चों के स्कूल जाने से पहले पेरेंट्स की काउंसलिंग होनी चाहिए। यह समझना ज़रूरी है कि आपके बच्चे को क्या चाहिए, और उसी के आधार पर स्कूल का चयन करें। ऐसा स्कूल चुनें जिसमें खुला क्षेत्र हो और स्टाफ बच्चों की समस्याओं को हल करने में सक्षम हो। स्कूल और उसकी फैकल्टी बच्चों को संतुष्ट करने में भी सक्षम होना चाहिए।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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