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अध्यात्म: तनावमुक्त जीवन का आधार, विशेषज्ञों की राय

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नई दिल्ली। अध्यात्म को अगर सही रूप में देखा जाए तो यह संपूर्ण और संतुलित जीवन जीने का एक सार्वभौमिक तरीका है। आज के युग में जबकि हमने बहुत अधिक वैज्ञानिक और भौतिक उन्नति कर ली है, हमारे सामने व्यक्तिगत और सामाजिक तौर पर यह चुनौती है कि हम अध्यात्म के क्षेत्र में भी उसी तरह अद्भुत रूप से तरक्की करें। अध्यात्म केवल एक आस्था नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों में जाकर खुशी और प्रेम का एहसास कराने वाली प्रक्रिया है। आज के समय में जब समाज में विवाद और तनाव बढ़ रहे हैं, अध्यात्म ही एकमात्र ऐसा उपाय है जो हमें नकारात्मक भावनाओं से दूर कर सकता है।

 

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इसी को लेकर हमनें कुछ आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़े अध्यात्म के जानकारों से बात की, आईए आपको बताते हैं… क्या कुछ कहा उन्होंने

भोपाल, मध्य प्रदेश – एम्स भोपाल की सह प्राध्यापक और आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़ी डॉ. सुरुचि जैन ने अध्यात्म के महत्व पर जोर देते हुए कहा है कि यह केवल एक आस्था नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों में जाकर खुशी और प्रेम का एहसास कराने वाली प्रक्रिया है। उन्होंने बताया कि आज के समय में जब समाज में विवाद और तनाव बढ़ रहे हैं, अध्यात्म ही एकमात्र ऐसा उपाय है जो हमें नकारात्मक भावनाओं से दूर कर सकता है। साथ ही, योग शिक्षक संजय खुराना ने अध्यात्म को निःस्वार्थ सेवा का माध्यम बताते हुए कहा कि यह हमें अपने भीतर की शक्ति और आत्मा के सच्चे स्वरूप को समझने में मदद करता है। उन्होंने बताया कि आज की युवा पीढ़ी को अध्यात्म अपनाने की आवश्यकता है, ताकि वे जीवन की चुनौतियों का सामना कर सकें और मानसिक संतुलन बनाए रख सकें। आर्ट ऑफ लिविंग के फैकल्टी धर्मेन्द्र डंग ने भी इसके सकारात्मक प्रभावों पर प्रकाश डाला, जिससे जीवन में उत्साह और आनंद की वृद्धि होती है। जिसमें अध्यात्म के महत्व और उसके प्रभावों पर विभिन्न विशेषज्ञों की राय शामिल है।


डॉ. सुरुचि जैन ने बताया कि उनके अनुसार अध्यात्म वह प्रक्रिया है जो आपको अपने वास्तविक स्वरूप से मिलाती है। यह आपको यह अहसास कराती है कि आप स्वयं प्रेम हैं। आप जो खुशी दूसरों, वस्तुओं, या परिस्थितियों में खोजते हैं, वह असली खुशी नहीं है। असली खुशी आपके अंदर ही है, और आप उस खुशी के खजाने के मालिक हैं। यह समझना आवश्यक है कि आप हीरे और मोती से कम नहीं हैं। अध्यात्म आपको यह एहसास कराता है, और यहीं से आपका आत्मबल बढ़ता है, आपका दृष्टिकोण विकसित होता है।

जब हम अध्यात्म से जुड़े होते हैं, तो हमें कोई पराया नहीं लगता; सभी अपने लगने लगते हैं। जब सब अपने लगते हैं, तो नकारात्मक भावनाएँ जैसे ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, और गुस्सा समाप्त होने लगती हैं। इस प्रक्रिया में हमारा व्यक्तित्व निखरने लगता है, क्योंकि सभी को अपना मानने से हमारा दृष्टिकोण विस्तृत हो जाता है। प्रेम और उत्साह हमारे जीवन में उभरकर सामने आते हैं। आज के समय में, जब आप कहते हैं कि पराए भी अपने लगने लगते हैं, यह सच है।

इस युग में अध्यात्म से जुड़ने की आवश्यकता अधिक है, क्योंकि आज भाई-भाई से लड़ रहे हैं, और घरों में तरह-तरह के विवाद हो रहे हैं, चाहे वह जमीन के लिए हो, पैसे के लिए, या किसी और कारण से।

समाज में जो अराजकता फैली है, उससे लेकर छोटे-छोटे घरेलू विवादों तक, बड़े देशों के बीच के विवादों का भी एक ही उपचार है। मैं एक डॉक्टर हूँ, और चिकित्सीय दृष्टिकोण से कहूँ तो वह है अध्यात्म। जब सभी यह समझते हैं कि हम सभी एक हैं, तो कोई भी किसी के साथ गलत नहीं करता और हर कोई अपने भीतर खुशी पाता है। इस विश्वास के साथ, हर कोई यह महसूस करता है कि कोई है जो उनकी देखभाल कर रहा है।

जब हम परमपिता परमात्मा से जुड़े होते हैं, तो हमारी चेतना में विस्तार होता है। इसीलिए अध्यात्म सबसे प्रभावी उपाय है।

मुझे अध्यात्म की असली परिभाषा का एहसास आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन से जुड़ने के बाद हुआ, जिसकी स्थापना गुरुदेव रवि शंकर ने की थी। मैं 2019 में उनसे जुड़ी और तब से मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मैंने समझा कि मेरा पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन, दोनों में विज्ञान और अध्यात्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह एहसास हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है, और मैं इसे अपनी जिम्मेदारी मानती हूँ कि आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन से जुड़कर मेरा दृष्टिकोण बदल गया।

अध्यात्म से जुड़ने के बाद, परायापन खत्म हो जाता है, और द्वेष की भावना भी समाप्त हो जाती है। जब आप अपने परिवार वालों से प्रेम करते हैं, तो उनके प्रति बुरी भावनाएँ नहीं होतीं। अगर आप समझें कि सभी अपने हैं, तो आपके मन में स्वाभाविक रूप से प्रेम उत्पन्न होता है। अध्यात्म में रहने से यह समझ आ जाती है और हमारे व्यक्तित्व में वह निखार आ जाता है कि हमें सभी अपने लगने लगते हैं।

भोपाल, मध्य प्रदेश से योग शिक्षक संजय खुराना ने कहा कि आपने अध्यात्म पर एक बहुत ही अच्छा प्रश्न किया है, क्योंकि अक्सर लोग अध्यात्म को गलत समझते हैं। लोग इसे धर्म से जोड़ देते हैं, जबकि वास्तव में इसका धर्म से कोई सीधा संबंध नहीं है। हम ईश्वर की भक्ति करते हैं, उनसे कुछ मांगते हैं, और जब हमें वह मिलता है, तो इसे अध्यात्म मान लेते हैं। लेकिन अगर केवल धर्म पर आस्था ही अध्यात्म होता, तो आज धर्म के नाम पर इतनी लड़ाइयाँ न होतीं।

असली अध्यात्म पाने के बजाय देने से संबंधित है। यह निःस्वार्थ सेवा का माध्यम है, जिसमें हम बिना किसी अपेक्षा के किसी की मदद करते हैं और उनके जीवन में प्रगति लाते हैं। अगर हमने किसी की सहायता की, लेकिन बदले में कुछ अपेक्षा की, तो यह अध्यात्म नहीं है।

अध्यात्म हमें सिखाता है कि हम सिर्फ शरीर नहीं हैं, बल्कि आत्मा भी हैं, जो कभी नष्ट नहीं होती। शरीर समाप्त हो सकता है, लेकिन आत्मा अजर-अमर है। यह समझना भी अध्यात्म का हिस्सा है।

मनुष्य जीवन का लक्ष्य केवल भौतिक सुख-सुविधाओं में नहीं है, बल्कि आत्म-साक्षात्कार और जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति पाना है। अध्यात्म का प्रकाश हमें भौतिकता के कारण उत्पन्न अंधकार से बाहर निकालता है और हमें अपने साथ-साथ दूसरों और सर्वोच्च शक्ति के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने में मदद करता है।

आज के दौर में, जहाँ तनाव और मानसिक संघर्ष बढ़ रहे हैं, अध्यात्म ही वह माध्यम है जो हमें तनावग्रस्त होने से बचाता है। यह हमारे व्यक्तित्व को निखारता है और संतुलित जीवन जीने की कला सिखाता है, जिसे हम ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ भी कह सकते हैं।

भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने तीन मार्ग बताए हैं: ज्ञान योग, कर्म योग, और भक्ति योग। भक्ति योग सिखाता है कि जो कुछ भी हो रहा है, वह ईश्वर की इच्छा से हो रहा है और वह हमारे लिए सबसे अच्छा है। कर्म योग सिखाता है कि बिना किसी अपेक्षा के कर्म करना ही असली कर्म है। ज्ञान योग आत्म-ज्ञान प्राप्त करने पर आधारित है।

श्री श्री रविशंकर तीन महत्वपूर्ण प्रश्न पूछने की सलाह देते हैं: “आप कौन हैं?” जब हम इन प्रश्नों का उत्तर खोजना शुरू करते हैं, तो हमारा अध्यात्म की ओर सफर शुरू हो जाता है। चाहे वह भागवत गीता हो, आर्ट ऑफ लिविंग, या पतंजलि के योगसूत्र, सभी अध्यात्म के विभिन्न मार्ग बताते हैं, लेकिन अंततः सभी का उद्देश्य एक ही है—आत्मिक प्रगति और संतुलित जीवन।

भोपाल, मध्य प्रदेश की असिस्टेंट प्रोफेसर राखी शर्मा ने कहा कि यदि मेरी राय से देखा जाए, तो अध्यात्म का अर्थ है मन की शांति। हमारे जीवन में दो पहिए होते हैं, और दोनों ही आवश्यक हैं, जैसे एक साइकिल के पहिए। जैसे हमें भौतिक संसार में जीवित रहने के लिए धन की आवश्यकता होती है, वैसे ही हमें मानसिक संतुलन और सच्ची प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अध्यात्म की भी आवश्यकता है।

सच्ची खुशी और मन की शांति हमें केवल अध्यात्म के माध्यम से ही मिल सकती है। इसलिए जीवन में दोनों पहलुओं का संतुलन बनाए रखना जरूरी है—एक पैर भौतिक संसार में और दूसरा अध्यात्म में होना चाहिए। आज के दौर में, जहाँ हम बाजारवाद और दिखावे की दुनिया में जी रहे हैं, अध्यात्म हमारे लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है ताकि हम वास्तविक जीवन में वापस आ सकें।

देखिए, हम सभी कामकाजी लोग हैं। आप भी काम कर रहे हैं और मैं भी एक पेशेवर क्षेत्र में काम कर रही हूँ। जीवन यापन के लिए काम करना आवश्यक है, लेकिन आज के माहौल में हमें हर तरह के लोग और चुनौतियाँ मिलेंगी। इन सबके बीच, यदि मेरा मन शांत और स्थिर है, तो अध्यात्म मुझे किसी भी मुश्किल परिस्थिति में गिरने नहीं देता। यदि मन स्थिर नहीं है, तो छोटी-छोटी समस्याएँ भी पहाड़ जैसी लगेंगी। लेकिन अगर मन स्थिर है, तो पहाड़ जैसी समस्याएँ भी छोटी लगेंगी।

अध्यात्म हमें समस्याओं का सामना करने की ताकत देता है, और आजकल के युवाओं में हम देख रहे हैं कि थोड़ा सा परिणाम बिगड़ने पर वे सुसाइड कर लेते हैं। अध्यात्म यहाँ मदद करता है, यह हमें बताता है कि जीवन केवल एक नंबर तक सीमित नहीं है। कठिनाइयों का सामना करना और आगे बढ़ना ही जीवन का हिस्सा है।

आजकल हम एक दिखावे की दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ बाहरी रूप से सबकुछ अच्छा दिखता है, लेकिन अंदर से लोग परेशान होते हैं। अध्यात्म हमें आडंबर की इस दुनिया से ऊपर उठाता है और वास्तविक शांति प्रदान करता है।

मैं 2015 से आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़ी हूँ, और यह मेरे जीवन में बहुत बड़ा योगदान दे चुका है। इसलिए मैं यह सवाल उठाती हूँ कि जो लोग अध्यात्म को नहीं अपनाते, वे क्यों नहीं अपनाते? मन की शांति और चिंताओं से मुक्ति पाने के लिए हमें अध्यात्म को अपनाना होगा।

चुनौतियाँ और परेशानियाँ जीवन का हिस्सा हैं, जिन्हें हम रोक नहीं सकते, लेकिन अध्यात्म हमें उनसे निपटने की शक्ति प्रदान करता है। जितनी मन की शांति रहेगी, उतने ही हमारे रिश्ते और हमारा पेशेवर जीवन मजबूत होगा, और हम आगे ही बढ़ते रहेंगे।

हम देखते हैं कि कई युवा अवसादग्रस्त होकर सुसाइड करने जैसे कदम उठा लेते हैं। यह केवल इसलिए होता है क्योंकि उन्हें लगता है कि वे सफल नहीं होंगे। परंतु सच्चाई यह है कि सफलता और खुशी एक ही चीज़ नहीं है।

अध्यात्म हमें जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक मानसिक शक्ति देता है। मेरी अपनी ज़िन्दगी में भी कई मुश्किलें आईं, लेकिन अध्यात्म ने मुझे उन्हें चैलेंज के रूप में देखने की शक्ति दी। पहले मैं परेशान हो जाती थी, लेकिन अब मैं समस्याओं को चैलेंज के रूप में देखती हूँ, और यही मेरे जीवन में सबसे बड़ा मोटिवेशन है।

पूर्व शिक्षक और काहिरा में भारतीय दूतावास के शिक्षक, द आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन की अंजू सिंह ने कहा कि अध्यात्म हमारे जीवन का एक बहुत महत्वपूर्ण और बुनियादी हिस्सा है। जैसे हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेट्स और अमीनो एसिड से बना है, वैसे ही हमारी चेतना ऊर्जा, उत्साह, शांति, और खुशी से बनी होती है। अध्यात्म वही है जो हमारी चेतना को ऊपर उठाता है, चाहे वह शांत मन हो, करुणा हो, या हमारे अंदर की खुशी, प्रेम और सृजनात्मकता हो।

अध्यात्म हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक विकास में एक बड़ी भूमिका निभाता है। यह तनाव कम करने, एंग्जाइटी घटाने, और क्रोध या अवसाद जैसी समस्याओं को कम करने में मदद करता है। साथ ही, यह हमारी आंतरिक शांति को भी बढ़ाता है, जिससे लोग अपने जीवन का महत्त्व समझ पाते हैं।

जब हम अध्यात्म को अपनाते हैं, तो हमारा जीवन नई दिशा में बढ़ता है और हमें जीने का महत्त्व समझ आता है। इसके बारे में बात करते हुए अंजू सिंह ने बताया कि वे आर्ट ऑफ लिविंग से कब और कैसे जुड़ीं। उन्होंने बताया कि पहले उन्हें कई भ्रांतियों का सामना करना पड़ा, और यंगस्टर्स के मन में कई तरह के कन्फ्यूज़न होते हैं। लेकिन जब उन्होंने सुदर्शन क्रिया की, तो उन्होंने पाया कि सभी उत्तर हमारे अंदर ही हैं।

सुदर्शन क्रिया एक अनूठी तकनीक है, जो हमें अपने अस्तित्व के सात स्तरों को समझने में मदद करती है। इसे करने के बाद, अंजू को महसूस हुआ कि यह वही था जिसकी उन्हें तलाश थी। उन्होंने बताया कि इससे उनका उत्साह और कौशल बढ़ गया, और उनका तनाव धीरे-धीरे दूर होने लगा। उन्होंने कहा कि उनका जीवन देखने का नजरिया बदल गया, और उन्होंने सोचा कि क्यों न मैं अपने लिए ही नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी कुछ करूं।

आर्ट ऑफ लिविंग 1981 से समाज में योगदान दे रहा है, और आज यह 180 देशों में 10,000 से अधिक केंद्रों के साथ मौजूद है। 500 मिलियन से अधिक लोगों ने इसे वैश्विक स्तर पर अपनाया है। अंजू सिंह ने कहा कि गुरुदेव के अनुसार, जब प्रेम ज्ञान के साथ होता है, तो वह आनंद बन जाता है, और जब प्रेम से ज्ञान हटा दिया जाता है, तो वह दुख में बदल जाता है।

अंत में उन्होंने कहा कि जब हम अपने जीवन में अध्यात्म को अपनाते हैं, तो हमें स्पष्टता, शुद्धता और सच्चाई प्राप्त होती है, और हमें इसी मार्ग पर चलना चाहिए।

भोपाल से आर्ट ऑफ लिविंग के फैकल्टी धर्मेन्द्र डंग ने बताया कि अध्यात्म का मतलब है जीवन में उत्साह, आनंद, और सद्भाव को बढ़ावा देना। आज की आधुनिक जिंदगी में हम लगातार दौड़-भाग में रहते हैं, जिससे अवसाद और मानसिक थकान हो जाती है। इससे बाहर निकलने के लिए हम अक्सर अध्यात्म की ओर मुड़ते हैं, और यह बहुत मददगार हो सकता है।

धर्मेन्द्र के अनुसार, अध्यात्म जीवन का मूल है। जब हम इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाते हैं, तो हम अवसाद और अन्य नकारात्मकताओं से दूर हो पाते हैं। आज के समय में युवाओं में या तो अवसाद है या आक्रामकता, और इसका कारण जीवन में संतुलन की कमी है। पुराने समय में लोग अधिक शांतिपूर्ण और संतुलित होते थे, क्योंकि उनका जीवन मूल रूप से अध्यात्म से जुड़ा हुआ था।

आज के तेज़-तर्रार जीवन में मानसिक स्वास्थ्य पर काफी चर्चा हो रही है, और विज्ञान भी ध्यान और योग को बढ़ावा दे रहा है। यह समय एक बदलाव का बिंदु है, जहां युवाओं और कॉर्पोरेट्स में भी ध्यान और मानसिक संतुलन पर जागरूकता बढ़ रही है।

धर्मेन्द्र जी ने अपने अनुभव के बारे में बताया कि वे 2002 में आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़े, हालांकि शुरू में उन्हें इसमें रुचि नहीं थी। लेकिन जब उन्होंने सुदर्शन क्रिया और ध्यान की तकनीकों का अनुभव किया, तो उन्हें जीवन में शांति, ऊर्जा, और सकारात्मकता का अनुभव हुआ। यह एक अद्भुत यात्रा थी, जिसने उन्हें प्रेरित किया कि वे इस मार्ग पर और आगे बढ़ें और दूसरों को भी इसका लाभ पहुंचाएं।

उन्होंने आगे बताया कि इस अनुभव ने उनके जीवन को न केवल व्यक्तिगत रूप से बल्कि समाज के प्रति उनकी सेवा भावना को भी गहरा कर दिया। धर्मेन्द्र जी का मानना है कि अध्यात्म से जुड़कर हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

जब पेरेंट्स अपने बच्चों को प्राइमरी स्कूल भेजते हैं, तो उनकी प्राथमिक अपेक्षा होती है कि बच्चों को मजेदार तरीके से सीखने का अवसर मिले। छोटे बच्चों का दिमाग पहले आनंद लेना चाहता है। अगर उन्हें मजा नहीं आएगा, तो वे आगे नहीं बढ़ेंगे। हर बच्चे के अंदर प्रतिभा होती है, जरूरी है हम उसे समझें।

बच्चों के स्कूल जाने से पहले पेरेंट्स की काउंसलिंग होनी चाहिए। यह समझना ज़रूरी है कि आपके बच्चे को क्या चाहिए, और उसी के आधार पर स्कूल का चयन करें। ऐसा स्कूल चुनें जिसमें खुला क्षेत्र हो और स्टाफ बच्चों की समस्याओं को हल करने में सक्षम हो। स्कूल और उसकी फैकल्टी बच्चों को संतुष्ट करने में भी सक्षम होना चाहिए।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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