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जॉर्ज सोरोस के संगठन से सोनिया गांधी का संबंध BJP के गंभीर आरोप

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नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने अब पूर्व कांग्रेस चीफ सोनिया गांधी के भी जॉर्ज सोरोस फाउंडेशन से तार जुड़े होने के आरोप लगाए हैं। साथ ही यह भी कहा है कि यह सहयोग दिखाता है कि भारत के आंतरिक मामलों में किस तरह से विदेशी ताकतों का दखल है। दरअसल, जिस संगठन का नाम भाजपा ले रही है उसे फाउंडेशन की तरफ से आर्थिक मदद मिलती है। संगठन कश्मीर को भारत से अलग करने के विचार का समर्थन करता है।

भाजपा के ऑफिशियल एक्स पेज पर पोस्ट किया। इसमें आरोप लगाया गया कि कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी का एफडीएल-एपी फाउंडेशन की सह-अध्यक्ष के रूप में जॉर्ज सोरोस फाउंडेशन के साथ लिंक है। पोस्ट में कहा गया कि यह संगठन कश्मीर को एक अलग स्वतंत्र देश मानता है। देश की सबसे पुरानी पार्टी का देश को तोड़ने वाली विचार धारा के साथ जुड़ा होना अपने आप ही इस मामले की गंभीरता को भी उजागर करता है। यह भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी संस्थाओं के प्रभाव और ऐसे संबंधों के राजनीतिक प्रभाव को भी दिखाता है।

भाजपा ने आरोप लगाया कि सोनिया गांधी का जॉर्ज सोरोस के साथ लिंक राजीव गांधी फाउंडेशन की अध्यक्षता के कारण हुआ। इससे यह पता चलता है कि भारत को तोड़ने की मानसिकता रखने वाले संगठन किस हद तक भारतीय संगठनों में फंडिंग करते हैं।

राहुल गांधी की रैली में नजर आया था जॉर्ज सोरोस से जुड़ा व्यक्ति- भाजपा
पोस्ट में कांग्रेस नेता और लोकसभा के नेता विपक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर भी सवाल उठाए गए। भाजपा ने कहा कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में जॉर्ज सोरोस फाउंडेशन से फंड लेने वाले सलिल शेट्टी भी शामिल हुए थे। यहां वह चोरी छिपे नहीं बल्कि सीधे राहुल गांधी के साथ में चलते हुए देखा जा सकता है। आखिर यह सीधा कनेक्शन किस और इशारा करता है।

अडानी के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस को लाइव प्रसारित किया- बीजेपी
हाल में भारतीय व्यापारी अडानी के ऊपर अमेरिका की तरफ से लगे आरोपों पर भी कांग्रेस का आड़े हाथों लिया। भाजपा ने कहा कि अडानी के मुद्दे पर राहुल गांधी ने जो प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी उसे जॉर्ज सोरोस द्वारा फंड किए संगठन ने लाइव दिखाया था। यह दिखाता है कि कांग्रेस और जॉर्ज सोरोस के रिश्ते कितने मजबूत है और यह भारत के लिए कितने खतरनाक हैं। यह दिखाता है कि वह भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी से उतारने के लिए कितने उत्सुक हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस सांसद शशि थरूर भी जॉर्ज सोरोस को अपना एक पुराना दोस्त बता चुके हैं।

भाजपा की तरफ से हाल ही में अमेरिका पर इल्जाम लगाया गया था कि अमेरिका की तरफ से भारत में हस्तक्षेप करने वाली ताकतें काम कर रही है। इसका जवाब देते हुए अमेरिकी उच्चायोग ने इसे निराशाजनक बताया था।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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