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किसी भी क्षेत्र में चुनौतियां ही आपको मजबूत बनाती हैं, मायानगरी में भी कई अप एंड डाउंस देखे – स्वपनेश

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मुंबई। फिल्म सिटी मुंबई में करियर बनाने में किसी भी नवोदित कलाकार को कई उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। कई बार तो बड़े संघर्ष के बाद सफलता मिल पाती है तो कभी तुरंत बुलंदी छू लेते हैं। उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के समथर तहसील से आने वाले स्वपनेश श्रीवास्तव नवोदित कलाकार ने अपने करियर के बारे में बताते हुए उन्होंने अपने करियर की शुरुआत कैसे की इस बारे में जानकारी साझा की।

उन्होंने अपनी करियर के बारे में बताते हुए कहा है की बचपन से ही मुझे फिल्म लाइन में जाना था और मेरे पिताजी भी बचपन से मुझे फिल्म लाइन में भेजना चाहते थे। इसलिए शुरू से ही डिसाइड था कि मुझे फिल्म लाइन में जाना है। मैंने इस करियर की शुरुआत 2021 में मुंबई से की। मैंने इस लाइन में जाने के लिए सबसे पहले क्राफ्ट को सीखा क्योंकि मुझे मालूम था कि बिना सीखे मैं नहीं कर सकता हूं। जब मैं पहली बार मुंबई पहुंचा तो कई जगह मैंने एक्टिंग देखी, सीखी और की भी, पर कोरोना में लॉकडाउन के लगते ही मैं वापस आ गया था। फिर मैंने अपना कोर्स 2022 में शुरू किया। क्रिएटिंग कैरेक्टर एक्टिंग स्कूल से मैंने अपना 6 महीने का डिप्लोमा कोर्स किया और इसी दौरान मैंने काफी कुछ सीखा।

मैंने सीखने के बाद वहां का प्रोसेस देखा, जाना और समझा और एक आउटसाइडर होने की वजह से वहां कोई पहचान नहीं है। अगर आप आउटसाइडर नहीं हो लेकिन आपकी पहचान है तो आपको इस लाइन में काफी मदद भी मिलती है। लोग आपको जानते हैं पहचानते हैं जिससे आपको इस लाइन में काफी मदद होती है। वहीं आपका टैलेंट बोलता है, लेकिन टैलेंट को बुलवाने के लिए टाइम ज्यादा लग जाता है।

मेरे अभी तक के करियर में कई अप्स एंड डाउंस भी आए हैं। मैंने थिएटर शुरू किया और कई नाटक भी किए जिनमे से ‘ख़ामोश अदालत जारी है , तोबा टेक सिंह कुछ नाम है जो मेरे लिए बहुत मददगार साबित हुए है। मुझे लोगों से सराहना मिली। मुझे कई अच्छे ऑडिशन के लिए बुलाया गया। अब मुझे अमेजॉन में सीरीज करने का अच्छा अवसर प्राप्त हुआ और मेरा लुक टेस्ट हुआ। मैंने डिजिटल ऐड भी किए हुए हैं। बाकी अभी मैं सीख रहा हूं की जब आपका ऑडिशन अच्छा नहीं होता तो कभी आप अच्छा करते हैं। जब लोग आपको सराहना देते हैं। अभी भी मैं सीख ही रहा हूं और मानता हूँ कि सीखना ही सबसे महत्त्वपूर्ण है।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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