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कुछ कर दिखाने का हौंसला : इन महिलाओं ने पेश की प्रेरक कहानियां

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नई दिल्ली। देशभर की महिलाओं ने अपनी चुनौतियों का सामना करते हुए सफलता की अनूठी मिसालें कायम की हैं। टेक्सटाइल डिज़ाइनर सुरति चावला, फैशन डिज़ाइनर निधि गोयल, एजुकेशनिस्ट डॉ. प्रिया अरोरा और देवांशी अग्रवाल जैसी महिलाओं ने अपने-अपने क्षेत्रों में संघर्ष और समर्पण से नए आयाम हासिल किए। इनकी कहानियां आत्मनिर्भरता, जुनून और कड़ी मेहनत की प्रेरणा देती हैं।

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यूपी के वाराणसी से टेक्सटाइल डिज़ाइनर सुरति चावला ने डीबी न्यूज़ नेटवर्क के साथ अपने उद्यमी सफर की कहानी साझा की। अपने ब्रांड ‘सुरति’s’ की शुरुआत और चुनौतियों पर बात करते हुए, सुरति ने बताया कि कैसे उन्होंने डिज़ाइनिंग के प्रति अपने जुनून को करियर में बदला।

सुरति ने बताया कि उनका इंट्रेस्ट स्कूल के दिनों से ही आर्ट्स में था। और जब 11वीं-12वीं में आईं, तो उन्होंने अपने करियर के लिए डिज़ाइनिंग को चुना। उन्होंने बताया कि अपने माता-पिता को इस क्षेत्र में जाने के लिए मनाना मुश्किल था, लेकिन धीरे-धीरे वे भी समझने लगे कि सुरति के लिए यह रास्ता सही है।

सुरति ने NIFT और Pearl Academy जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं में पढ़ाई की और बाद में हैंडमेड और हैंडक्राफ्टेड टेक्सटाइल प्रोडक्ट्स में अपना करियर शुरू किया।

जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत कैसे की, तो उन्होंने बताया कि उन्होंने जयपुर के एक ब्रांड के साथ इंटर्नशिप की, जहां से उन्हें सीखने का बड़ा मौका मिला। लेकिन सुरति हमेशा से अपने नियमों पर काम करना चाहती थीं। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने के लिए फुल-टाइम नौकरी नहीं चुनी और पार्ट-टाइम प्रोजेक्ट्स पर काम किया।

कोविड के समय, जब सरकारी परियोजनाएं बंद हो गईं, सुरति ने अपने ब्रांड ‘सुरति’s’ की नींव रखी। सुरति नाम को उन्होंने अपनी आत्मनिर्भरता का प्रतीक माना और इसे खुशी से हाथों से बने प्रोडक्ट्स के रूप में प्रस्तुत किया।

आज, सुरति का ब्रांड देशभर में जाना जाता है, और उनकी प्राथमिकता हमेशा कस्टमर सैटिस्फैक्शन रही है। उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य सिर्फ प्रोडक्ट्स बेचना नहीं, बल्कि ग्राहक को उसकी असली वैल्यू समझाना है।

अंत में, सुरति ने नए उद्यमियों को संदेश देते हुए कहा, “स्ट्रगल्स हर स्टेप पर आएंगे, लेकिन सेल्फ-मोटिवेशन और अपने जज्बे के साथ आगे बढ़ना ही आपको सफल बनाएगा।”

डीबी न्यूज़ नेटवर्क के साथ उनकी बातचीत को सुनने के बाद, यह स्पष्ट है कि सुरति चावला ने अपनी मेहनत और दृढ़ता से अपने ब्रांड को ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।

मध्यप्रदेश के ग्वालियर से डॉ. प्रिया अरोरा, फाउंडर, सागा स्पीकिंग एंड ग्रूमिंग एकेडमी ने अपनी प्रेरणादायक यात्रा साझा की, जिसमें उन्होंने आत्म-संदेह और आत्मविश्वास की कमी से जूझते हुए सफलता की ऊँचाइयों को छुना बताया। अपनी शुरुआत ग्वालियर से दिल्ली पढ़ाई के लिए जाने के दौरान उन्होंने अपनी प्रोफेशनल जर्नी की शुरुवात की। और उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपनी जगह बनाई, जहाँ उन्होंने 8 वर्षों तक एक स्कूल की प्रिंसिपल के रूप में और 3 सालों तक डायरेक्टर के रूप में कार्य किया।

उन्होंने बताया कि उनकी असली प्रेरणा तब आई जब उन्होंने यह महसूस किया कि शिक्षा सिर्फ विषयों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि व्यक्तित्व विकास और आत्मविश्वास को भी शामिल करना चाहिए। कोविड महामारी के बाद उन्होंने “सागा स्पीकिंग एंड ग्रूमिंग एकेडमी” की स्थापना की, जहाँ उनका मुख्य उद्देश्य लोगों में आत्मविश्वास भरना और उन्हें एक अच्छे वक्ता के रूप में तैयार करना है।

डॉ. प्रिया का मानना है कि आत्मविश्वास की कमी एक बड़ी चुनौती है, और उन्होंने इसे अपनी जीवन की प्रेरणा बना लिया। आज तक, उन्होंने लगभग 20,000 से 30,000 लोगों को ट्रेनिंग दी है और उनका लक्ष्य 1 मिलियन लोगों को आत्मविश्वासी और सक्षम बनाना है। हालांकि, उन्होंने संघर्षों का सामना भी किया, जैसे कि सीमित संसाधनों के साथ अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचना और यह सुनिश्चित करना कि उनकी ट्रेनिंग से वास्तविक प्रभाव हो रहा है या नहीं।

उनकी यह यात्रा संघर्ष, समर्पण और समाज को कुछ बेहतर देने की चाह का प्रतीक है। “गलतियाँ नहीं होंगी, तो हम सीखेंगे कैसे?” उनके इस विश्वास ने उन्हें निरंतर आगे बढ़ने और शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित किया है।

महाराष्ट्र के मुंबई से डीबी न्यूज़ नेटवर्क के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, फैशन डिजाइनर निधि गोयल ने अपने करियर की यात्रा और चुनौतियों के बारे में विस्तार से चर्चा की। निधि, जिन्होंने अपनी शिक्षा फॉर अकैडमी ऑफ फैशन से बीए ऑनर्स किया, ने बताया कि उन्होंने शादी के बाद फैशन डिज़ाइनिंग के क्षेत्र में कदम रखा।

निधि ने अपने करियर की शुरुआत छोटे प्रदर्शनों और स्थानीय ग्राहकों से की, लेकिन धीरे-धीरे काम बढ़ता गया। आज उनकी डिज़ाइन 40 से 70 वर्ष की महिलाओं के लिए एक खास पहचान बन चुकी है। उन्होंने बताया कि इस आयु वर्ग की महिलाओं के लिए उपयुक्त कपड़े ढूंढना एक चुनौती होती है, और यहीं पर उनका डिज़ाइनिंग काम आता है।

उन्होंने बताया कि उनका काम सिर्फ देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शनी करने तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने विभिन्न संस्कृतियों और टेस्ट के हिसाब से अपनी डिज़ाइनिंग को बदलने की कला भी सीखी है।

निधि का कहना है कि इस फील्ड में कॉम्पिटीशन बहुत है, और सही फिट, सही कारीगर और एम्ब्रॉयडरी का मिलना एक बड़ी चुनौती है। लेकिन उनके अनुसार, इस फील्ड में सफलता का सबसे महत्वपूर्ण मंत्र है ‘कंसिस्टेंसी’।

अपने परिवार के सहयोग के बारे में बात करते हुए निधि ने कहा कि उनके पति और ससुराल ने हमेशा उनका साथ दिया है, जिससे उन्हें काम के साथ-साथ अपने बच्चे का भी ध्यान रखने में मदद मिली।

निधि की यह प्रेरक कहानी उन महिलाओं के लिए एक मिसाल है, जो परिवार और करियर के बीच संतुलन बनाने का प्रयास कर रही हैं।

मध्यप्रदेश के ग्वालियर से देवांशी अग्रवाल, एक प्रेरणादायक महिला उद्यमी, ने अपने करियर की शुरुआत के बारे में बात करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने 25 साल की उम्र में, अपने पहले बच्चे के बाद, शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखा। उन्होंने कहा, “यह एक अद्भुत यात्रा रही है, लेकिन साथ ही काफी कठिन भी। मैंने अपने करियर की शुरुआत होममेकर के रूप में की थी और इसे हॉबी के रूप में लिया, लेकिन धीरे-धीरे यह पेशे में बदल गया।”

देवांशी ने शिक्षा के क्षेत्र में गहराई से काम करते हुए कई प्रयोग किए। उनकी यह यात्रा सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं रही, बल्कि वे अब ऑर्गेनिक फार्मिंग और हेल्दी केक्स के बिज़नेस में भी कदम रख रही हैं। उनका कहना है कि वे आने वाले 5 से 10 सालों में खुद को एक सफल उद्यमी और शिक्षा के क्षेत्र में और अधिक स्थापित होते देखना चाहती हैं।

देवांशी का मानना है कि शिक्षा का क्षेत्र बेहद जिम्मेदारी भरा है। उन्होंने बताया, “जब आप किसी बच्चे को शिक्षा दे रहे होते हैं, तो आपको पूरी तरह से समर्पित रहना होता है। अगर किसी बच्चे को कुछ समझ में नहीं आता, तो आपको अपने तरीके को पुनः जांचना होता है।”

बदलते शिक्षा के परिदृश्य पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में शिक्षा में कई सकारात्मक बदलाव आए हैं। उन्होंने भारत के सनातन धर्म और संस्कृति की शिक्षा पर जोर दिया और कहा कि वर्तमान में बच्चों को भारतीय इतिहास और संस्कृति से जोड़ने का मौका मिल रहा है, जो पहले इतना नहीं था।

देवांशी ने यह भी कहा कि अब शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ रही है, खासकर सरकारी स्कूलों में जहां अब शिक्षकों की भर्ती और भी कठिन हो गई है, जिससे शिक्षा का स्तर सुधर रहा है। उनका मानना है कि जितना कठिन प्रतियोगिता शिक्षकों के लिए होगी, उतने ही अधिक योग्य और जानकार शिक्षक उभर कर आएंगे, जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित हो सकेगा।

देवांशी अग्रवाल की यह यात्रा शिक्षा और उद्यमिता के बीच तालमेल बिठाते हुए समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

जब पेरेंट्स अपने बच्चों को प्राइमरी स्कूल भेजते हैं, तो उनकी प्राथमिक अपेक्षा होती है कि बच्चों को मजेदार तरीके से सीखने का अवसर मिले। छोटे बच्चों का दिमाग पहले आनंद लेना चाहता है। अगर उन्हें मजा नहीं आएगा, तो वे आगे नहीं बढ़ेंगे। हर बच्चे के अंदर प्रतिभा होती है, जरूरी है हम उसे समझें।

बच्चों के स्कूल जाने से पहले पेरेंट्स की काउंसलिंग होनी चाहिए। यह समझना ज़रूरी है कि आपके बच्चे को क्या चाहिए, और उसी के आधार पर स्कूल का चयन करें। ऐसा स्कूल चुनें जिसमें खुला क्षेत्र हो और स्टाफ बच्चों की समस्याओं को हल करने में सक्षम हो। स्कूल और उसकी फैकल्टी बच्चों को संतुष्ट करने में भी सक्षम होना चाहिए।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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