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स्पोर्ट्स एंकरिंग में रचा नया इतिहास, बचपन की जिम्मेदारियों ने बनाया आज का मुकाम

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नई दिल्ली। भोपाल की युवा स्पोर्ट्स एंकर चैताली पाटिल ने कम उम्र में अपनी मेहनत और हुनर से एंकरिंग की दुनिया में खास मुकाम हासिल किया है। योगा में गोल्ड मेडलिस्ट और एथलीट रही चैताली ने जब पारिवारिक जिम्मेदारियाँ कंधों पर लीं, तब उन्होंने एंकरिंग को न केवल करियर बनाया बल्कि उसमें उत्कृष्टता भी हासिल की। स्कूल के मंच से शुरू हुआ उनका यह सफर अब नेशनल और इंटरनेशनल स्पोर्ट्स इवेंट्स तक पहुँच चुका है। इस सफ़र में उनका मार्गदर्शन किया उनकी गुरु दीप्ति अग्निहोत्री एवं मंगलम इत्यालम ने ।

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से ताल्लुक रखने वाली चैताली पाटिल ने बेहद कम उम्र में स्पोर्ट्स एंकरिंग की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई है। चैताली की एंकरिंग की शुरुआत 2016 में स्कूल के दिनों से हुई, जब उनकी एक शिक्षक ने उनकी आवाज और प्रस्तुति क्षमता को पहचाना और उन्हें नेशनल बाल रंग महोत्सव में मंच संचालन का मौका दिया। इसके बाद चैताली ने लगातार चार वर्षों तक इस मंच पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया और धीरे-धीरे इस क्षेत्र में खुद को स्थापित करती गईं। परिवार की जिम्मेदारियाँ और पिता की बीमारी ने उन्हें जल्दी आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया, लेकिन उन्होंने कभी पढ़ाई, करियर और घर की जिम्मेदारी से समझौता नहीं किया।

आज चैताली 200 से अधिक स्पोर्ट्स इवेंट्स की एंकरिंग कर चुकी हैं, जिनमें 11 खेलो इंडिया इवेंट्स, 2 नेशनल गेम्स और 1 इंटरनेशनल वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स शामिल हैं। वे बताती हैं कि हर प्रकार की एंकरिंग में वे खुद को सहज पाती हैं, लेकिन अब तक का अधिकतम अनुभव स्पोर्ट्स इवेंट्स में रहा है, जिससे उनका नाम इस क्षेत्र में तेजी से उभर कर सामने आया है। वे टॉप एंकर बनने के लक्ष्य को लेकर गंभीर हैं और अब देश के बड़े स्पोर्ट्स कॉमेंटर से प्रशिक्षण लेने की योजना बना रही हैं।

चैताली का मानना है कि आज वो जो कुछ भी हैं उसमें उनके माता पिता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, चैताली के माता पिता हमेशा चैताली के लिए उनकी प्रेरणा स्रोत रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एक सफल एंकर के लिए स्क्रिप्ट पढ़ने से ज्यादा जरूरी होता है विषय की गहरी समझ, शब्दों की जानकारी और मौके पर बोलने की क्षमता। वे युवाओं को सलाह देती हैं कि इस फील्ड की ग्लैमरस छवि देखकर नहीं, बल्कि ज्ञान और मेहनत के बल पर इसमें आएं। उन्होंने हाल ही में अपना पॉडकास्ट चैनल भी शुरू किया है, जहाँ वे मध्य प्रदेश के प्रतिभाशाली लोगों के इंटरव्यू लेती हैं और उनकी कहानियों को लोगों तक पहुँचाती हैं। उनका सफर आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि कैसे जिम्मेदारियाँ भी सफलता की सीढ़ी बन सकती हैं।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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