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सिंगल यूज प्लास्टिक का न करें उपयोग, प्लास्टिक न केवल हमारे शरीर, जीव-जंतु और हमारे महासागरों को भी प्रदूषित कर रहा है…

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नई दिल्ली। देशभर में प्लास्टिक कचरा एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। गली-मोहल्लों, घरों और दफ्तरों हर जगह प्लास्टिक का कचरा देखा जा सकता है। आज प्लास्टिक हर जगह है। यह हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन, हमारे द्वारा पिए जाने वाले पानी और हमारे द्वारा साँस ली जाने वाली हवा में मौजूद है। प्लास्टिक न केवल हमारे शरीर, जीव जंतु और हमारे महासागरों को प्रदूषित कर रहा है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों में भी योगदान दे रहा है। इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के साथ कई निजी संस्थाएं भी प्रयास कर रही हैं।

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इसी संदर्भ में हमने एनवायरमेंटलिस्ट और कुछ प्रोफेशनल्स से बातचीत की, जिन्होंने कई महत्वपूर्ण बातें साझा कीं। आईए आपको बताएं क्या कुछ कहा उन्होंने।

चंचल गोयल, पर्यावरणविद्, ग्वालियर, एमपी

सरकार और विभिन्न सरकारी संस्थाओं, स्कूलों, कॉलेजों और समाजसेवी संस्थाओं ने प्लास्टिक के उपयोग को रोकने के लिए कई प्रयास और आंदोलन किए हैं। लेकिन सबसे बड़ी जिम्मेदारी हमारी होती है। अगर हम खुद को जिम्मेदार नागरिक मानते हैं, तो हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि अब हम प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करेंगे। सरकार कितनी भी कोशिश कर ले, जब तक हम जिम्मेदार नहीं बनेंगे, तब तक कुछ नहीं होगा।

संकल्प लेने से ही प्लास्टिक बैग्स का उपयोग पूरी तरह से बंद हो सकता है। हमें अपने आराम के क्षेत्र से बाहर आकर सोचना पड़ेगा कि भविष्य में प्लास्टिक कितनी खतरनाक हो सकती है। इसके दुष्प्रभाव न केवल जानवरों और पशुओं पर, बल्कि मिट्टी और पानी पर भी दिखाई दे रहे हैं। सरकार समय-समय पर प्रयास करती रहती है, लेकिन 1 जुलाई 2022 से प्लास्टिक को बैन करने के बावजूद इसका उपयोग जारी है। आजकल लगभग हर चीज प्लास्टिक में पैक होकर मिल रही है। सिंगल यूज प्लास्टिक पर कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन जब तक हम जागरूक नहीं होंगे, तब तक प्लास्टिक का उपयोग बंद नहीं हो सकता।

डॉ प्रिया अरोरा, फाउंडर, सागा स्पीकिंग एंड ग्रूमिंग एकेडमी, ग्वालियर, एमपी

आजकल लोग अपनी सुविधा और आदत के कारण भी सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं। क्योंकि यह सहज उपलब्ध होती है और कुछ लोग इसे मजबूरी में भी इस्तेमाल करते हैं क्योंकि अभी इसके बहुत ज्यादा विकल्प मार्केट में उपलब्ध नहीं हैं। कुछ लोगों को जागरूकता की कमी के कारण यह भी नहीं पता होता है की इसका इस्तेमाल न सिर्फ हमारे लिए बल्कि जानवरों से लेकर पर्यावरण के लिए भी कितना नुकसान दायक है। पर यह सस्ती और बहुत हल्की होती है इसलिए इसका इस्तेमाल ज्यादा होता है।

इसे रोकने के लिए कड़े कदम उठाने के साथ हमें जन जागरूकता पर भी फोकस करना होगा। इसके वैकल्पिक साधनों पर जाना होगा। और जागरूकता के माध्यम से यह बात हर घर तक पहुंचाना होगी। जिससे यह हमें और हमारी आने वाली पीढ़ियों को नुकसान न पहुंचा सके।

मीतू अग्रवाल, एंटरप्रेन्योर, ग्वालियर, एमपी

प्लास्टिक का उपयोग तभी बंद हो सकता है जब हम इसका उपयोग पूरी तरह से छोड़ देंगे। जब तक हम प्लास्टिक का उपयोग करते रहेंगे, तब तक यह बाजार में चलता रहेगा। हमें इसे उपयोग में लाना बंद करना होगा, तभी यह पूरी तरह से बंद हो सकेगा। लोग जागरूक नहीं हैं और जागरूक भी होना नहीं चाहते। जब तक लोग जागरूक नहीं होंगे, तब तक प्लास्टिक का उपयोग बंद नहीं होगा।

अन्य देशों की बात करें तो वहां एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही सख्त कानून बनाए गए हैं और लोग उनका पालन भी करते हैं। लेकिन हमारे देश में, कानून तो बनाए गए हैं और बड़ी-बड़ी बातें भी की जाती हैं, लेकिन इनका कड़ाई से पालन नहीं कराया जाता। हमारे यहां जुर्माने के नाम पर कुछ खास नहीं होता, जरूरी है की जुर्माने की राशि को भी बढ़ाया जाए।

पूजा सिंह कुशवाह, सामाजिक कार्यकर्ता, ग्वालियर, एमपी

प्लास्टिक के उपयोग को रोकने के लिए सभी को जागरूक होना जरूरी है। सरकार अपना काम कर रही है, लेकिन जनता को भी सोचना होगा कि प्लास्टिक के नुकसान क्या हैं और इसका पर्यावरण और बच्चों के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा। यदि हर व्यक्ति इस दिशा में प्रयास करेगा तो बड़ा बदलाव संभव है। हमें खुद को जागरूक करना होगा और अपनी आदतों में बदलाव लाना होगा। जब हम खुद शुरुआत करेंगे, तो हमारे बच्चे और दूसरे लोग भी इसे देखेंगे और इससे प्रेरित होंगे।

हमें कपड़े के बैग का उपयोग करना चाहिए और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए। प्लास्टिक के गिलास की जगह मिट्टी के बर्तन और गिलास का उपयोग करना चाहिए, जिससे छोटे कारीगरों को भी रोजगार मिलेगा और पर्यावरण को भी फायदा होगा। सिंगल यूज प्लास्टिक को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है। इसके लिए हमें सरकार पर पूरी तरह निर्भर होने की जरूरत नहीं है। सब्जी वाले, दुकान वाले और शॉपिंग मॉल में मिलने वाली पॉलिथीन की जगह कपड़े के बैग का उपयोग करना चाहिए। यहां तक कि गिफ्ट देते समय भी कपड़े के बैग का उपयोग करें। हम खुद कपड़े के बैग बनाते हैं और ऑर्डर मिलने पर उन्हें भेजते हैं। यदि प्लास्टिक पर पेनल्टी लगाई जाए और सख्ती से पालन कराया जाए तो लोग डरने लगेंगे और प्लास्टिक का उपयोग बंद करेंगे।

प्रेरणा गोयल, सामाजिक कार्यकर्ता, ग्वालियर, एमपी

एकल उपयोग प्लास्टिक का उपयोग हमारे जीवन शैली पर गलत प्रभाव डाल रहा है जिसके हम सब स्वयं जिम्मेदार है। इसे रोकने के लिए हम सभी को महात्वपूर्ण प्रयास और कदम उठाने चाहिए। सबसे पहले, उन्हें पुन: उपयोग करने योग्य वस्त्रों का उपयोग करना चाहिए, जैसे कि कपड़े के बैग और स्टील या कांच की बोतलें। प्लास्टिक मुक्त उत्पाद चुनने चाहिए और प्लास्टिक कचरे का सही तरीके से निपटान करना चाहिए, जैसे कि उसे अलग करके रीसायकल करना। स्थानीय स्वच्छता और प्लास्टिक मुक्त अभियानों में भाग लेकर जागरुक करना चाहिए।

जिम्मेदारों को भी एकल उपयोग प्लास्टिक के उपयोग को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
सबसे पहले, उन्हें सख्त नियम और प्रतिबंध लागू करने चाहिए ताकि प्लास्टिक बैग, बोतलें, और अन्य एकल उपयोग प्लास्टिक उत्पादों का उत्पादन और वितरण कम हो सके।
उन्हें प्लास्टिक मुक्त विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिए, जैसे कि पुन: उपयोग योग्य बैग और कंटेनर।

 

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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