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महिला सुरक्षा पर बढ़ते सवाल: DB NewsNetwork की विशेष चर्चा में महिलाओं ने दिए सुझाव, कहा समाज की सोच बदलने की ज़रूरत…

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नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंताएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं, और अपराधों का बढ़ता ग्राफ हालात को और गंभीर बना रहा है। DB News Network के साथ एक विशेष चर्चा में, महिलाओं ने बढ़ते अपराधों और महिला सुरक्षा के प्रति कई सवाल उठाए। कई महिलाओं ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सुरक्षा की खामियों को उजागर किया और सरकार से सख्त कदम उठाने की मांग की है। और कहा कि जब तक महिलाओं के प्रति समाज की सोच नहीं बदलेगी तब तक सुधार की उम्मीद कम है।

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मध्य प्रदेश के इंदौर से मिसेज इंटरनेशनल क्वीन ऑफ इंडिया (2024) आभा पांचाल ने महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण पर अपने गहन विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि महिला सुरक्षा केवल शारीरिक सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि मानसिक और सामाजिक सुरक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में महिला सुरक्षा की स्थिति पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि जहां शहरी इलाकों में पुलिस हेल्पलाइन, स्मार्टफोन ऐप्स और सीसीटीवी जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने जागरूकता अभियानों और महिलाओं के अधिकारों की जानकारी के प्रचार-प्रसार पर जोर दिया।

आभा पांचाल एक मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं और पूर्व में कई एविएशन कंपनियों के साथ जुड़ी रहीं साथ ही मिसेज मध्यप्रदेश से लेकर कई खिताब भी अपने नाम किए हैं। उन्हेंने महिला सशक्तिकरण की जरूरत पर चर्चा करते हुए कहा कि शिक्षा और समानता का प्रचार-प्रसार न केवल महिलाओं, बल्कि पुरुषों के बीच भी जरूरी है। उन्होंने ग्रामीण इलाकों में प्रचलित पुरुष प्रधान मानसिकता और जातिगत भेदभाव को महिला प्रगति में सबसे बड़ी बाधा बताया। उन्होंने “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसी सरकारी योजनाओं की सराहना की और कहा कि ये पहल महिलाओं को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभा रही हैं।

अपने अनुभवों को साझा करते हुए आभा पांचाल ने बताया कि समाज में संतुलन और सामंजस्य बनाए रखने के लिए सभी को समान अवसर और अधिकार प्रदान करना चाहिए। मिसेज मध्य प्रदेश, मिसेज इंटरनेशनल क्वीन ऑफ इंडिया, और मिसेज फिटनेस दिवा जैसी प्रतिष्ठित उपाधियों की विजेता आभा ने कहा कि महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा, जागरूकता और बच्चों में लैंगिक समानता का संस्कार बचपन से ही डालना जरूरी है। वे अब अपनी प्रेरणादायक यात्रा के माध्यम से युवाओं को शिक्षित और प्रेरित करने के लिए सेमिनार और कार्यक्रमों का आयोजन कर रही हैं।

जबलपुर में जन्मी और पली-बढ़ी आभा पंचाल ने पर्यावरण विज्ञान में मास्टर डिग्री हासिल की है। विमानन उद्योग में 18 वर्षों का समृद्ध अनुभव रखने वाली आभा ने कई पुरस्कार और खिताब जीते हैं। कतर एयरवेज, जेट एयरवेज और एयर इंडिया जैसी प्रमुख एयरलाइनों में काम करने के बाद, वे अब एक प्रेरक वक्ता और प्रशिक्षक के रूप में अपनी भूमिका निभा रही हैं। उनके जीवन का उद्देश्य समाज में सकारात्मक बदलाव लाना और महिलाओं को सशक्त बनाना है।

जबलपुर की रहने वाली मिस मध्यप्रदेश भारती पंवार (2024) ने महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि महिला सुरक्षा एक व्यापक और संवेदनशील विषय है, जिसे केवल नीतियों और योजनाओं से नहीं बदला जा सकता। उन्होंने बताया कि बदलाव की शुरुआत हमारे भीतर से होती है। पितृसत्तात्मक सोच और समाज की मानसिकता को बदलना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। भारती ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा का अर्थ केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह बच्चों को सम्मान और समानता की मूलभूत शिक्षा देने का माध्यम बनना चाहिए।

भारती ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी महिलाओं को अपनी आवाज उठाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पितृसत्तात्मक समाज में महिलाएं अक्सर परिवार और समाज के डर से अपनी इच्छाओं और अधिकारों को पीछे छोड़ देती हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि महिला सशक्तिकरण के लिए ग्रामीण क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। महिला पुलिस थानों, हेल्पलाइन नंबरों और जागरूकता अभियानों के माध्यम से महिलाओं को अधिकारों और सुरक्षा की जानकारी दी जानी चाहिए। साथ ही, समाज के पुरुष वर्ग को भी महिलाओं के महत्व को समझने और उन्हें समान अधिकार देने के लिए शिक्षित करना जरूरी है।

उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में महिला सुरक्षा के लिए कई योजनाएं और कदम उठाए गए हैं, लेकिन असली बदलाव तभी आएगा जब महिलाएं खुद को सशक्त महसूस करेंगी। भारती ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प हर महिला की ताकत है। उन्होंने माता-पिता से आग्रह किया कि वे अपनी बेटियों को मानसिक रूप से इतना मजबूत बनाएं कि वे किसी भी चुनौती का सामना कर सकें। भारती ने कहा, “हर लड़की में शक्ति है, बस उसे पहचानने और आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है। जिस दिन यह बदलाव हर महिला में आ गया, अपराधों की संख्या में स्वतः ही कमी आ जाएगी।”

ग्वालियर की उद्यमी वंदना जग्गी ने महिला सुरक्षा और साइबर क्राइम के बढ़ते खतरों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि भले ही सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा और समानता के लिए कई अधिनियम और योजनाएं लागू की हैं, लेकिन उनकी प्रभावशीलता सवालों के घेरे में है। वंदना ने बताया कि जहां पहले महिलाओं को लैंग्वेज भेदभाव, घरेलू हिंसा और वेतन असमानता जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता था, वहीं आज साइबर क्राइम और इंटरनेट का दुरुपयोग नई चुनौती बनकर उभरा है। खासकर युवा लड़कियों और महिलाओं को साइबर क्राइम के खतरों से बचाने के लिए जागरूकता और पुख्ता कदम उठाने की आवश्यकता है।

वंदना ने कहा कि साइबर अपराध, जैसे कि नकली लिंक साझा करना, मोबाइल डेटा चोरी, और ऑनलाइन उत्पीड़न, महिलाओं के मानसिक और सामाजिक जीवन पर गहरा असर डाल रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसी समस्याओं के समाधान के लिए कानूनों को सख्ती से लागू करना और उनके प्रभावी कार्यान्वयन पर ध्यान देना जरूरी है। उन्होंने यह भी बताया कि साइबर सुरक्षा के अभाव में महिलाएं, विशेषकर कम उम्र की लड़कियां, ऑनलाइन धोखाधड़ी और उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं। वंदना ने सुझाव दिया कि ऐसी समस्याओं को रोकने के लिए तकनीकी जागरूकता और साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

उन्होंने महिला सुरक्षा के लिए बनाए गए हेल्पलाइन और शिकायत तंत्र की खामियों को भी उजागर किया। वंदना ने कहा कि कई बार महिलाओं को अपनी शिकायत दर्ज कराने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, और त्वरित सहायता के अभाव में समस्याएं गंभीर रूप ले लेती हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि शिकायत प्रक्रिया को सरल और तेज बनाया जाए, और साथ ही ड्रॉप बॉक्स और शिकायत केंद्रों के माध्यम से महिलाओं की समस्याओं का समाधान सुनिश्चित किया जाए। अंत में, उन्होंने कहा कि जब तक समाज और सरकार मिलकर तकनीक और जागरूकता के जरिए इन समस्याओं का समाधान नहीं करेंगे, तब तक महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण तैयार करना मुश्किल रहेगा।

छिंदवाड़ा की गृहणी चांदनी पाटनी ने महिला सुरक्षा और समाज में व्याप्त रूढ़िवादी मानसिकता पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि महिलाएं आज भी रात में बाहर निकलने पर खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं। घरवाले हमेशा चिंता में रहते हैं कि देर रात बाहर रहने वाली बेटी या महिला सुरक्षित घर लौटेगी या नहीं। चांदनी ने कहा कि यह असुरक्षा की भावना केवल घर तक सीमित नहीं है, बल्कि कार्यस्थल पर भी महिलाओं को अनुचित दृष्टिकोण और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि समाज में अब भी यह धारणा बनी हुई है कि महिलाएं अपनी कड़ी मेहनत से नहीं, बल्कि अनुचित तरीकों से आगे बढ़ती हैं।

चांदनी ने छोटी बच्चियों के साथ हो रहे अपराधों पर भी गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि ग्रामीण इलाकों में बच्चियों को ₹10 के चिप्स के बदले उनका शोषण का किया जाता है, कभी कभी परिवार और रिश्तेदारों द्वारा भी बच्चियों का शोषण किया जाता है, और इन अपराधों की शिकायत करने में लोग बदनामी के डर से कतराते हैं। चांदनी का मानना है कि यह समस्या केवल प्रशासनिक विफलता नहीं है, बल्कि सामाजिक मानसिकता का भी दोष है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में समाज हमेशा महिलाओं को ही जिम्मेदार ठहराता है, जबकि दोषियों पर उंगली उठाने से बचता है।

उन्होंने दुबई जैसे देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सख्त कानून लागू हैं, और यही कारण है कि वहां महिलाएं सुरक्षित महसूस करती हैं। चांदनी ने मांग की कि भारत में भी कड़े कानून लागू किए जाएं और समाज में व्याप्त महिलाओं के प्रति गलत धारणाओं को बदलने की दिशा में प्रयास किया जाए। उन्होंने कहा कि जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी और प्रशासन द्वारा सख्त कदम नहीं उठाए जाएंगे, तब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होगा। महिला सुरक्षा केवल कानूनों से नहीं, बल्कि समाज की सोच और सामूहिक जिम्मेदारी से संभव है।

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा की आरोग्य मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल की एग्जीक्यूटिव मैनेजिंग डॉयरेक्टर पूजा खंडेलवाल ने महिलाओं की सुरक्षा और जागरूकता के अभाव पर अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में शहरी इलाकों में महिलाएं काफी हद तक सुरक्षित हैं, लेकिन ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में हालात बेहद चिंताजनक हैं। वहां महिलाओं और बच्चियों के साथ शोषण की घटनाएं आम हैं। पूजा ने बताया कि इन इलाकों में बच्चियां छोटी उम्र में ही शोषण का शिकार हो रही हैं, लेकिन उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए क्या करना चाहिए, इसकी जानकारी ही नहीं है। इंटरनेट की पहुंच होने के बावजूद शिक्षा और जागरूकता की भारी कमी है।

पूजा ने कहा कि सरकार ने स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए कई योजनाएं बनाई हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनका क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो पा रहा है। स्कूलों में शिक्षक भौतिक रूप से मौजूद नहीं होते, और सरकारी योजनाओं का लाभ सही रूप से महिलाओं तक नहीं पहुंचता। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को ज़िला, तहसील और गांव स्तर पर जागरूकता शिविर आयोजित करने चाहिए। इन शिविरों में महिलाओं को उनके अधिकारों, सुरक्षा से जुड़े हेल्पलाइन नंबर, और स्वास्थ संबंधी जानकारी दी जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जागरूकता सबसे पहली सीढ़ी है। महिलाओं को यह सिखाना जरूरी है कि अगर उनके साथ कोई गलत घटना हो तो वे किस नंबर पर कॉल करें और अपनी पहचान को गोपनीय कैसे रखें। पूजा ने यह भी कहा कि समाज को अपनी सोच बदलने की जरूरत है। महिला उत्पीड़न के मामलों में पुलिस और प्रशासन को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए और समाज को भी ऐसी घटनाओं का पुरजोर विरोध करना चाहिए। जागरूकता बढ़ाने और सशक्तिकरण के प्रयासों से ही महिलाओं को सुरक्षित और आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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