नई दिल्लीI भारत में आत्मनिर्भरता, रचनात्मकता और साहस की नई मिसाल बन रही हैं वे महिलाएं, जिन्होंने व्यक्तिगत संघर्षों, सीमित संसाधनों और सामाजिक अपेक्षाओं को मात देकर अपने जुनून को एक पहचान दी है। चाहे कला हो, योग, न्यूमेरोलॉजी या क्रिएटिव एंटरप्रेन्योरशिप—भोपाल और दिल्ली की इन 5 प्रेरणादायक महिलाओं ने अपने-अपने क्षेत्रों में कुछ ऐसा किया है, जो न केवल उनके लिए बल्कि समाज के लिए भी मिसाल बन चुका है। इनके प्रयास न सिर्फ खुद के लिए रास्ता बना रहे हैं, बल्कि समाज में उन तमाम लोगों को नई राह दिखा रहे हैं जो बदलाव की शुरुआत का इंतजार कर रहे हैं।

भारत की लुप्त होती कलाओं को पुनर्जीवित करने में जुटीं भोपाल की प्रज्ञा वारुणी शर्मा
भोपाल की समाजसेवी और स्टार्टअप उत्कर्षा की प्रोपराइटर प्रज्ञा वारुणी शर्मा अपने अनोखे स्टार्टअप के जरिए भारत की लुप्त होती पारंपरिक कलाओं और हस्तशिल्प को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने के मिशन पर हैं। दो साल पहले शुरू किए गए इस स्टार्टअप की प्रेरणा उन्हें अपने पिता और पति के साथ पुलिस सेवा में रहते हुए देशभर की यात्राओं के दौरान मिली। उन्होंने बताया कि ट्रांसफर के कारण वह देश के कई दूर-दराज और जनजातीय क्षेत्रों में गईं, जहां उन्होंने कला और संस्कृति का अनमोल खजाना देखा, जो आज के दौर में विलुप्ति की कगार पर है।
प्रज्ञा का मुख्य उद्देश्य भारत की प्राचीन हस्तकलाओं को सीधे कारीगरों से लेकर आम जनता तक पहुंचाना है, ताकि न केवल इन कलाकारों को आर्थिक लाभ हो, बल्कि उनकी कला को वैश्विक पहचान भी मिल सके। उन्होंने अरनमुल्ला मिरर जैसे दुर्लभ शिल्पों का उदाहरण देते हुए कहा कि ये धातु से बने दर्पण बेहद प्राचीन हैं और उत्तर भारत में बहुत कम लोग इनके बारे में जानते हैं। उनका मानना है कि ऑथेंटिक हस्तकला केवल तभी सुरक्षित रह सकती है जब उसे मूल स्रोत से ही लाकर बेचा जाए, जिससे नकली उत्पादों से बचाव हो सके।
आगे की योजना के बारे में प्रज्ञा ने बताया कि वे आने वाले समय में अपने उत्पादों की प्रदर्शनियों को न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी आयोजित करना चाहती हैं। उनका मानना है कि सरकार की ओर से निर्यात और जीआई टैग प्राप्त वस्तुओं को बढ़ावा देने के लिए और अधिक प्रयास किए जाने चाहिए, खासकर पूर्वोत्तर भारत जैसे क्षेत्रों में जहाँ आज भी अनगिनत अनछुए शिल्प मौजूद हैं। उनका स्टार्टअप “मेक इन इंडिया” अभियान के मूल मंत्र को आगे बढ़ाता है, जिसमें आत्मनिर्भरता, स्थानीयता और सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक पहचान दिलाने की प्रतिबद्धता है।

बैकिंग को पैशन से प्रोफेशन तक ले आईं भोपाल की क्रेविंग की फाउंडर विधि श्रीवास्तव
भोपाल की उद्यमी विधि श्रीवास्तव ने अपने बचपन के शौक को कोरोना काल में एक पेशेवर स्टार्टअप में बदल दिया। ‘क्रेविंग’ नाम से शुरू किया गया यह होम-बैकिंग वेंचर 2021 से लोगों का दिल जीत रहा है। मल्टीमीडिया प्रोफेशनल और सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने के साथ-साथ, विधि ने जब लॉकडाउन के समय लोगों की डिमांड देखी, तो ठान लिया कि अब अपने पैशन को प्रोफेशन बनाएंगी। बिना किसी प्रोफेशनल ट्रेनिंग के खुद से बैकिंग सीखी और अपने घर से ही स्वादिष्ट केक, कुकीज़, चॉकलेट्स और पेस्ट्रीज़ बनाना शुरू किया।
विधि ने बताया कि उनका स्टार्टअप फिलहाल माउथ-टू-माउथ पब्लिसिटी के जरिए चल रहा है और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लॉन्च करने की योजना है। उन्होंने यह भी साझा किया कि होम बैकिंग में सबसे बड़ी चुनौती सही प्राइसिंग और ग्राहकों को क्वालिटी का महत्व समझाना होता है। हालांकि, उनका मानना है कि एक बार ग्राहक को संतुष्टि मिल जाए, तो वह दोबारा ज़रूर लौटता है। अपनी जॉइंट फैमिली और पति से उन्हें पूरा समर्थन मिला है, जिससे वे घर, ऑफिस और बेकरी—तीनों को संतुलन के साथ संभाल रही हैं।
बैकिंग इंडस्ट्री में बढ़ते स्कोप को देखते हुए विधि आने वाले समय में अपने स्टार्टअप को भोपाल का टॉप ब्रांड बनाना चाहती हैं। वे चाहती हैं कि उनके प्रोडक्ट्स शहर के हर कोने में पहचाने जाएं और लोग ‘क्रेविंग’ के नाम को एक भरोसेमंद क्वालिटी के प्रतीक के रूप में देखें। हेल्दी ऑप्शन्स जैसे मिलेट्स बेस्ड बैकिंग पर भी वे रिसर्च कर रही हैं। विधि का सपना है कि उनका वेंचर सिर्फ एक बिज़नेस न होकर एक ऐसी पहचान बने, जो स्वाद, मेहनत और घरेलू हुनर का बेहतरीन मेल हो।

भोपाल की जानवी फेबयानी ने ‘जानवीज़ क्रिएटिव कॉर्नर’ से छुपी प्रतिभाओं को दी नई पहचान
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से आने वाली जानवी फेबयानी ने अपने स्टार्टअप ‘जानवीज़ क्रिएटिव कॉर्नर’ के ज़रिए सोशल मीडिया, एंकरिंग और पॉडकास्ट के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। जानवी पहले सोशल मीडिया मैनेजर थीं, जहां से उन्हें इंटरव्यू और कंटेंट क्रिएशन का अनुभव मिला। यहीं से उन्हें एंकरिंग में हाथ आजमाने की प्रेरणा मिली और धीरे-धीरे उन्होंने फैशन शो, प्रमोशनल इवेंट्स, और मिस इंडिया जैसे प्लेटफॉर्म पर अपनी भूमिका निभानी शुरू की।
जानवी का सफर आसान नहीं रहा—वे बताती हैं कि शुरू में उन्हें संघर्ष करना पड़ा, लेकिन यूनिवर्सिटी में अपने मेंटर्स के सहयोग से उन्होंने न केवल इस चुनौती को पार किया, बल्कि मॉडलिंग, थिएटर और एंकरिंग जैसे विविध क्षेत्रों में खुद को साबित भी किया। अब वे एक स्वतंत्र कंटेंट क्रिएटर के रूप में काम कर रही हैं और अपने पॉडकास्ट के माध्यम से ग्लैमर के पीछे छुपे सच, कलाकारों की चुनौतियाँ, और इंडस्ट्री की अनकही बातें सामने ला रही हैं।
जानवी का उद्देश्य है कि वे भोपाल और आस-पास के उन छुपे हुए कलाकारों और टैलेंट को सामने लाएं, जिन्हें अब तक पहचान नहीं मिली। वे चाहती हैं कि उनका प्लेटफॉर्म एक ऐसा मंच बने जहाँ हर क्षेत्र के क्रिएटिव लोग अपनी कहानी साझा करें और दूसरों को प्रेरित करें। उनका सपना है कि एक दिन वे अक्षय कुमार और हनी सिंह जैसे सितारों से भी इंटरव्यू करें, लेकिन वे मानती हैं कि इसके लिए उन्हें पहले ज़मीन से जुड़कर हर सीढ़ी चढ़नी होगी। उनकी यह सोच ही उन्हें एक सच्ची क्रिएटिव लीडर बनाती है।

भोपाल की दीपिका द्विवेदी ने शुरू किया ‘अद्विका योगा केंद्र’, अब 100 से ज्यादा महिलाओं को दे रहीं नया जीवन
भोपाल की दीपिका द्विवेदी ने अपने जीवन में योग को अपनाया और इससे मिले मानसिक एवं शारीरिक लाभों ने उन्हें इतना प्रेरित किया कि उन्होंने योग में पोस्ट ग्रेजुएशन कर ‘अद्विका योगा केंद्र’ की स्थापना की। शुरुआत में कुछ ही छात्राएं थीं, लेकिन आज वे करीब 100 लोगों को नियमित योग सिखा रही हैं।
दीपिका का मानना है कि योग सिर्फ शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि एक सम्पूर्ण जीवनशैली है। उनके अनुसार योग मानसिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक संतुलन को बहाल करने की एक कला है, जो भागदौड़ भरी और तनावपूर्ण जिंदगी में विशेष रूप से उपयोगी है। उन्होंने बताया कि उनके केंद्र में आने वाले कई लोगों ने ब्लड प्रेशर, थायरॉइड और तनाव जैसी समस्याओं से छुटकारा पाया है। वे मानती हैं कि बीमारियों की जड़ अक्सर मानसिक होती है, और योग उसी स्तर पर उपचार करता है।
आने वाले समय में दीपिका की योजना अधिक से अधिक महिलाओं तक योग के लाभ पहुँचाने की है, खासकर उन हाउसवाइव्स तक जो घर से बाहर नहीं जा सकतीं। उनका उद्देश्य है कि योग को आत्मनिर्भरता का ज़रिया भी बनाया जाए, जिससे महिलाएं न केवल स्वस्थ रहें बल्कि अपने आत्मविश्वास और छुपी हुई क्षमताओं को भी पहचानें। दीपिका मानती हैं कि योग एक ऐसा माध्यम है जो न केवल शरीर, बल्कि पूरे जीवन को सशक्त बना सकता है।

दिल्ली की न्यूमेरोलॉजिस्ट अश्वी खुराना ने कहा: ‘संख्याएं नहीं, यह जीवन का खाका है’ – फ्री कंसल्टेशन से शुरू किया सफर, अब पेशेवर रूप से कर रही मार्गदर्शन
दिल्ली की न्यूमेरोलॉजिस्ट अश्वी खुराना ने अपने जुनून को प्रोफेशन में तब्दील किया, जब उन्होंने निःशुल्क वेबिनार और स्व-अध्ययन के माध्यम से अंकों की गहराई को समझना शुरू किया। शुरुआत में उन्होंने अपने दोस्तों को फ्री कंसल्टेशन दी, जिनमें सकारात्मक परिणाम देख कर उन्होंने न्यूमेरोलॉजी को करियर बनाने का फैसला किया। आज वह सटीक भविष्यवाणियों और प्रभावशाली रेमेडीज़ के लिए पहचानी जाती हैं।
अश्वी का मानना है कि न्यूमेरोलॉजी सिर्फ भविष्य जानने का माध्यम नहीं, बल्कि एक व्यक्ति की पूरी जीवनयात्रा की संरचना होती है। जन्मतिथि से जुड़े अंकों द्वारा जीवन की दिशा, स्वभाव, अवसर और चुनौतियों को समझा जा सकता है। उनके अनुसार न्यूमेरोलॉजी प्लेनेट्स से गहराई से जुड़ी होती है और इसका उपयोग कर आने वाले वर्षों का विश्लेषण भी संभव है। वे इसे एस्ट्रोलॉजी से अधिक सहज और सटीक बताती हैं, हालांकि दोनों की उपयोगिता को बराबरी से स्वीकारती हैं।
अश्वी खुराना भविष्य में खुद को एक ऐसा नाम बनते देखना चाहती हैं जो न केवल अक्यूरेट भविष्यवाणियों के लिए जाना जाए बल्कि समाज के ज़रूरतमंदों के लिए सेवा का माध्यम भी बने। वे आज भी कई ज़रूरतमंद लोगों को निःशुल्क कंसल्टेशन और रेमेडीज़ देती हैं। उनका उद्देश्य है कि वे न्यूमेरोलॉजी को सिर्फ एक भविष्यवाणी का उपकरण नहीं, बल्कि लोगों की मदद और आत्मविकास का साधन बनाएं।
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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी
जब पेरेंट्स अपने बच्चों को प्राइमरी स्कूल भेजते हैं, तो उनकी प्राथमिक अपेक्षा होती है कि बच्चों को मजेदार तरीके से सीखने का अवसर मिले। छोटे बच्चों का दिमाग पहले आनंद लेना चाहता है। अगर उन्हें मजा नहीं आएगा, तो वे आगे नहीं बढ़ेंगे। हर बच्चे के अंदर प्रतिभा होती है, जरूरी है हम उसे समझें।
बच्चों के स्कूल जाने से पहले पेरेंट्स की काउंसलिंग होनी चाहिए। यह समझना ज़रूरी है कि आपके बच्चे को क्या चाहिए, और उसी के आधार पर स्कूल का चयन करें। ऐसा स्कूल चुनें जिसमें खुला क्षेत्र हो और स्टाफ बच्चों की समस्याओं को हल करने में सक्षम हो। स्कूल और उसकी फैकल्टी बच्चों को संतुष्ट करने में भी सक्षम होना चाहिए।




