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जुनून से सफलता तक का सफ़र: देश की इन महिलाओं की सफलता की प्रेरक कहानी उनकी ज़ुबानी

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नई दिल्ली। असम के दिनजन की केक आर्टिस्ट दर्शिता दत्ता, मध्यप्रदेश भोपाल की लड्डू बास्केट फाउंडर अंजू सूद और छत्तीसगढ़ रायपुर की इंटरनेशनल आर्टिस्ट मनीषा कोशारिया चाहे भोपाल की एकता सिंह या फिर नोएडा की डॉ मौशमी सिन्हा ने अपने जुनून को पेशे में बदलते हुए न सिर्फ खुद को स्थापित किया, बल्कि अपनी-अपनी कला के ज़रिए समाज में प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं।

नोएडा की डॉ. मौशमी सिन्हा ने रचा इतिहास, 45 ब्रांचेस के साथ बना देश का पहला इंटेन्शनल टीचिंग बेस्ड प्री-स्कूल चेन

नोएडा की रहने वाली डॉ. मौशमी सिन्हा ने एक शिक्षक के रूप में 2014 में अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन 2019 में उन्होंने एक ऐसे प्री-स्कूल की नींव रखी जिसने शिक्षा के क्षेत्र में नया आयाम स्थापित किया। आज उनके स्कूल की 45 फ्रेंचाइज़ ब्रांचेस देशभर में सफलतापूर्वक संचालित हो रही हैं, जिनमें बेंगलुरु, हैदराबाद, लखनऊ, दिल्ली, गुड़गांव, भोपाल और इंदौर शामिल हैं। उनका स्कूल भारत का पहला इंटेन्शनल टीचिंग बेस्ड प्री-स्कूल चेन है, जिसमें बच्चों की होलिस्टिक डेवलपमेंट पर विशेष ध्यान दिया जाता है। हाल ही में उन्होंने फिनलैंड के साथ शिक्षा और टीचर ट्रेनिंग के लिए अंतरराष्ट्रीय करार भी किया है।

इस स्कूल की सबसे बड़ी खासियत है इसका यूनिक करिकुलम, जो पूरी तरह इन-हाउस डेवलप किया गया है। यह करिकुलम बच्चों की व्यक्तिगत लर्निंग स्टाइल को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है—चाहे वो म्यूज़िक, विज़ुअल, या एक्टिविटी-आधारित लर्निंग हो। मौशमी सिन्हा का मानना है कि बच्चे, टीचर और पेरेंट्स के बीच मजबूत तालमेल ही शिक्षा की असली कुंजी है। इसी सोच के तहत उन्होंने पैरेंट्स के लिए एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया है, जो हर दिन की क्लास एक्टिविटी की जानकारी देता है, ताकि पेरेंट्स घर पर भी बच्चों की लर्निंग को दोहरा सकें।

फाउंडर डॉ. मौशमी बताती हैं कि बच्चों की खुशी और मानसिक शांति ही स्कूल का प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिए। उनके स्कूल में टीचर्स की मेंटल हेल्थ का भी विशेष ध्यान रखा जाता है और नियमित ट्रेनिंग व ओरिएंटेशन का आयोजन होता है। उनका मानना है कि अगर पेरेंट्स और टीचर्स मिलकर काम करें, तो बच्चों की ग्रोथ बहुआयामी और स्थायी होती है। वे चाहती हैं कि हर स्कूल इसी मॉडल को अपनाकर शिक्षा के स्तर को एक नई ऊँचाई तक ले जाए।

असम की दर्शिता दत्ता ने केक को बनाया कला, छोटे शहर से शुरू कर रही हैं मीठे सपनों की बड़ी उड़ान

दिनजन (असम) की रहने वाली केक आर्टिस्ट और उद्यमी दर्शिता दत्ता ने अपने शौक को व्यवसाय में बदलते हुए एक प्रेरणादायक सफर तय किया है। बचपन से ही बेकिंग का शौक रखने वाली दर्शिता ने अपनी मां से सीखा हुआ हुनर धीरे-धीरे प्रोफेशनल स्तर पर अपनाया। मास्टर्स करने और जॉब के अनुभव के बाद उन्होंने महसूस किया कि उनकी असली खुशी केक डेकोरेशन और डिज़र्ट आर्ट में है। 2019 में उन्होंने छोटे स्तर पर ऑर्डर लेना शुरू किया, और धीरे-धीरे सोशल मीडिया के जरिए उनकी पहचान बढ़ती गई।

दर्शिता का ये सफर आसान नहीं रहा, लेकिन उनके आत्मविश्वास, परिवार के सहयोग और आर्मी वेलफेयर संगठनों के प्रोत्साहन ने उन्हें हर नई जगह पर स्थापित होने में मदद की। शादी के बाद दिनजन में रहते हुए उन्होंने महिला एंटरप्रेन्योर्स के आयोजनों में भाग लेकर अपने केक आर्ट को एक नए दर्शक वर्ग तक पहुँचाया। उनका मानना है कि “मैं जो अपने घरवालों को खिला सकती हूँ, वही क्वालिटी अपने ग्राहकों को देना चाहती हूँ,” और यही सोच उनकी सबसे बड़ी ताकत बन गई है।

भविष्य में दर्शिता की योजना है कि वे अपने आर्मी ऑफिसर पति के रिटायरमेंट के बाद स्थायी रूप से एक बेकरी खोलें, जिसका सपना वह सालों से देख रही हैं। फिलहाल वे हर नए शहर में अपने जुनून को ज़िंदा रखते हुए ग्राहकों को बेहतरीन स्वाद और क्वालिटी के केक उपलब्ध करवा रही हैं। उनका यह सफर उन सभी महिलाओं के लिए एक मिसाल है जो घरेलू जिम्मेदारियों के साथ अपने सपनों को भी साकार करना चाहती हैं।

भोपाल की अंजू सूद ने ‘लड्डू बास्केट’ से रचा हेल्दी मिठास का नया स्वाद

भोपाल की अंजू सूद ने घर बैठे दो लड्डुओं से जो शुरुआत की थी, वह आज एक हेल्दी और देसी मिठास के स्टार्टअप ‘लड्डू बास्केट’ के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुकी है। अमजू ने बिना किसी निवेश के, अपने हाथों से तैयार किए गए लड्डुओं से लोगों का दिल जीता। शुरुआत में परिवार और परिचितों को दिए गए लड्डुओं को इतना पसंद किया गया कि धीरे-धीरे अब वे 25 अलग-अलग प्रकार के लड्डू बना रही हैं — जिनमें रागी, बाजरा, पंजीरी, ड्राई फ्रूट्स, बेसन, मूंग दाल और डेट्स-नट्स जैसे हेल्दी विकल्प शामिल हैं। खास बात यह है कि सभी लड्डू देसी गाय के घी में बिना किसी प्रिज़र्वेटिव के तैयार किए जाते हैं।

‘लड्डू बास्केट’ को अमेज़ॅन, जियोमार्ट और ट्रेड लिंक जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर भी लिस्ट किया गया है, जिससे इनके उत्पाद न सिर्फ भारत में बल्कि यूके और दुबई तक पहुँच चुके हैं। भोपाल में अंजू होम डिलिवरी भी देती हैं और ‘Wings of Women’ जैसे महिला उद्यमिता समूहों के माध्यम से सोसाइटी स्तर पर प्रदर्शनियों में भाग लेकर बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार कर रही हैं। अंजू बताती हैं कि शुरुआत में लड्डुओं की शेल्फ लाइफ को लेकर चुनौतियाँ रहीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और समय के साथ इस समस्या का समाधान भी खोज निकाला।

अंजू सूद का कहना है कि वे अपने स्टार्टअप को बहुत बड़ा नहीं बनाना चाहतीं, क्योंकि उनका लक्ष्य गुणवत्ता बनाए रखना है। परिवार का साथ उन्हें इस राह में मजबूती देता है, और वे अपने उत्पादों में 100% शुद्धता और हेल्थ को प्राथमिकता देती हैं, इसीलिए उनके रेट आम बाजार से थोड़े अलग हैं। उनका मानना है कि “गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं करना चाहिए,” और यही सिद्धांत उन्हें दूसरों से अलग बनाता है।

रायपुर की इंटरनेशनल आर्टिस्ट मनीषा कोशारिया ने पेंटिंग को बनाया साधना, विश्व मंच पर लहराया भारत का परचम

रायपुर, छत्तीसगढ़ की रहने वाली मनीषा कोशारिया ने अपनी कला यात्रा की शुरुआत बचपन में अपनी मां को देखकर की, जो स्वयं एक आर्टिस्ट थीं। पेंटिंग का यह बीज उनके भीतर तभी पड़ गया था, लेकिन यह शौक बाद में एक पेशेवर पहचान में तब्दील हो गया। दूरदर्शन में एक लंबा कार्यकाल बिताने के बाद, मनीषा ने अपने परिवार के सहयोग से पेंटिंग को अपना फुल-टाइम पैशन बना लिया। अहमदाबाद में रहते हुए उन्होंने फाइन आर्ट्स कॉलेज के प्रिंसिपल से मार्गदर्शन लिया और अपनी पहली एग्ज़िबिशन में ही जबरदस्त सफलता पाई। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

मनीषा की खासियत है उनकी माइथोलॉजिकल पेंटिंग्स, जिन्हें वे कंटेम्पररी स्टाइल में प्रस्तुत करती हैं। उनके बनाए देवी-देवताओं के चित्रों में वाइब्रेंट इंडियन कलर्स और भावनात्मक गहराई का अद्भुत मेल देखने को मिलता है। उनकी पेंटिंग्स न सिर्फ भारत में बल्कि फ्रांस, मिलान और ग्रीस जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी प्रदर्शित और सराही गई हैं। विदेशी दर्शकों के लिए उनके देवी-देवताओं के चित्र न सिर्फ आर्ट थे, बल्कि भारत की संस्कृति की जीवंत झलक भी थे, जिससे वे बेहद आकर्षित हुए।

मनीषा का मानना है कि पेंटिंग केवल एक कला नहीं, बल्कि आत्म-अभिव्यक्ति और साधना का माध्यम है। उनका सपना है कि वे आने वाली पीढ़ियों को भी यह कला सिखाकर एक अमिट धरोहर छोड़ें। वे कहती हैं, “ये मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी है कि मैं इस कला को आगे ले जाऊं ताकि जब मैं न भी रहूं, तो मेरा काम और मेरी कला ज़िंदा रहे।” उनका समर्पण और दृष्टिकोण आने वाली युवा कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

भोपाल की एकता सिंह ने हाउसवाइफ से मिसेस इंडिया तक का सफर तय कर रचा नया कीर्तिमान

भोपाल की एक्ट्रेस और मॉडल एकता सिंह की कहानी किसी प्रेरणादायक फिल्म से कम नहीं है। एक साधारण हाउसवाइफ के रूप में अपने बच्चों की देखभाल करते हुए एकता को 92.7 FM के एक रेडियो कॉम्पिटिशन बिग मैन साहब ने मंच पर वापसी का मौका दिया। पहले राउंड में स्टेज फियर का सामना करने के बावजूद उन्होंने खुद को दोबारा खोजने का संकल्प लिया और दूसरे सीज़न में डांसिंग टैलेंट से खुद को साबित किया। यह पल उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बन गया।

इसके बाद एकता ने आत्म-ग्रूमिंग पर काम करते हुए कई ब्यूटी पेजेंट्स में हिस्सा लिया। उन्होंने मैक्स मिसेस भोपाल में फर्स्ट रनर-अप और मिसेस मध्य प्रदेश का खिताब जीता। दिसंबर 2019 में उन्होंने मिसेस इंडिया के लिए क्वालिफाई किया और 2020 में इस टाइटल को जीतकर भोपाल और मध्य प्रदेश का नाम रोशन किया। इसके बाद मॉडलिंग और एक्टिंग की दुनिया से उन्हें कई ऑफर्स मिले, जिनमें टीवी शोज़, वेब सीरीज और ऐड शामिल हैं।

एकता ने बताया कि उन्होंने मुंबई जाने की बजाय भोपाल में ही अपने करियर की नींव मज़बूत की। स्थानीय कास्टिंग एजेंसियों से संपर्क कर छोटे-छोटे रोल्स से शुरुआत की और अब वह कानपुर, वाराणसी, और मुंबई तक शूट्स कर रही हैं। मराठी सीरियल्स में भी उनकी उपस्थिति बढ़ रही है। उनका सपना है कि वे लक्मे फैशन वीक में रैंप वॉक करें और एक डेली सोप में बड़ा रोल निभाएं।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

जब पेरेंट्स अपने बच्चों को प्राइमरी स्कूल भेजते हैं, तो उनकी प्राथमिक अपेक्षा होती है कि बच्चों को मजेदार तरीके से सीखने का अवसर मिले। छोटे बच्चों का दिमाग पहले आनंद लेना चाहता है। अगर उन्हें मजा नहीं आएगा, तो वे आगे नहीं बढ़ेंगे। हर बच्चे के अंदर प्रतिभा होती है, जरूरी है हम उसे समझें।

बच्चों के स्कूल जाने से पहले पेरेंट्स की काउंसलिंग होनी चाहिए। यह समझना ज़रूरी है कि आपके बच्चे को क्या चाहिए, और उसी के आधार पर स्कूल का चयन करें। ऐसा स्कूल चुनें जिसमें खुला क्षेत्र हो और स्टाफ बच्चों की समस्याओं को हल करने में सक्षम हो। स्कूल और उसकी फैकल्टी बच्चों को संतुष्ट करने में भी सक्षम होना चाहिए।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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