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एक दिन सभी भारतवासी मेरी आवाज को पहचानेंगे-सान्या एंकरिंग, रेडियो जॉकी और कम्युनिकेशन इन्स्ट्रक्टर के रूप में बनाई अपनी अलग पहचान

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नई दिल्ली। कहते हैं कुछ करने का जोश और आगे बढ़ाने की ललक अगर आपके मन में है तो आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता, ऐसा ही कुछ कर दिखाया है भोपाल की सिंगर, एंकर, रेडियो जॉकी और कम्युनिकेशन इन्स्ट्रक्टर सान्या आचार्य ने ने बताया कि उनका सफर 2019 में कॉलेज से पास आउट होने के बाद शुरू हुआ था, जब वे अपने कॉलेज के रेडियो स्टेशन में शामिल हुईं और यहां से उनका बोलने और गाने का सफर शुरू हुआ। बचपन से ही गाना गाने की शौकीन सान्या ने कभी कोई औपचारिक वोकल ट्रेनिंग नहीं ली, लेकिन कॉलेज में रेडियो जॉकी के रूप में उनके द्वारा गाए गए गानों और बोलने की कला ने उन्हें एक नई दिशा दी।

2017 में, सान्या ने आकाशवाणी के ‘युववाणी’ शो के ऑडिशन में भाग लिया और वहां से उनका रेडियो और एंकरिंग का सफर और भी मजबूत हुआ। इसके बाद, उन्होंने विभिन्न प्राइवेट रेडियो स्टेशनों में इंटर्नशिप की और सागर में एक रेडियो स्टेशन में काम किया। आजकल वे आकाशवाणी में युववाणी शो होस्ट करती हैं और अन्य कई बड़े शोज का हिस्सा बन चुकी हैं। इसके साथ ही सान्या डिजिटल क्रिएटर के रूप में इंस्टाग्राम पर भी सक्रिय हैं और उन्होंने भारत का पहला इंस्टाग्राम लाइव रेडियो शो भी किया है।

सान्या ने कुछ अपनी यादगार शोज का जिक्र करते हुए बताया कि “खेलो इंडिया यूथ गेम्स” जैसे बड़े इवेंट्स में होस्ट करना उनके लिए बहुत खास अनुभव था। इन इवेंट्स में देशभर से आए खिलाड़ियों से मिलकर और उन्हें इंटरव्यू करके उन्हें अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हुए देखना बहुत गर्व की बात थी। अपने परिवार के समर्थन के बारे में सान्या ने कहा कि शुरुआत में उनके परिवार को इस फील्ड के बारे में समझने में कठिनाई हुई, क्योंकि उनका कोई भी सदस्य इस क्षेत्र से नहीं था। लेकिन धीरे-धीरे जब उन्होंने देखा कि सान्या इस क्षेत्र में सफलता हासिल कर रही हैं, तो परिवार ने उन्हें पूरी तरह से सपोर्ट किया।

आने वाले समय के बारे में सान्या ने बताया कि उनका उद्देश्य हमेशा शोज करते रहना और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी सक्रिय रहना है। उनका मानना है कि “काम करते रहो, फल की चिंता मत करो” और उन्हें उम्मीद है कि एक दिन सभी भारतवासी उनकी आवाज को पहचानेंगे। सान्या ने एंकरिंग के बारे में कहा कि एक अच्छे एंकर के लिए सबसे जरूरी बात शब्दों का सही उच्चारण और प्रोग्राम को सही तरीके से प्रस्तुत करना है। किसी भी कार्यक्रम को होस्ट करते वक्त, यह महत्वपूर्ण है कि आप उस कार्यक्रम या संगठन को सही तरीके से रिप्रेजेंट करें और अपनी जिम्मेदारी को समझें।

सान्या आचार्य की यात्रा इस बात का उदाहरण है कि कठिनाइयों और शुरुआत में संदेह के बावजूद, अगर आप अपने कार्य के प्रति समर्पित रहते हैं और निरंतर प्रयास करते रहते हैं, तो सफलता आपके कदम चूमती है।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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