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कोरोनाकाल में ऑनलाइन एजुकेशन काफी मददगार रही, जिसका लाभ आज भी लिया जा रहा है, क्योंकि इसमें स्टूडेंट्स घर बैठे ही शिक्षा ले सकते हैं – डॉ नेहा शर्मा

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गाजियाबाद के जीडी गोएनका पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल डॉ नेहा शर्मा से जब हमने ऑनलाइन पढ़ने के तरीके और ऑफलाइन पढ़ने के तरीके को लेकर जब चर्चा की तो जानिए उन्होंने क्या कहा…

मार्च 2020 में भारत में कोविड के आते ही ऑनलाइन सिस्टम का एक नया पैटर्न शुरू हो गया जिसका कई लोग आज भी फायदा उठा रहे हैं। ऑनलाइन की आते ही एजुकेशन सिस्टम को भी काफी मदद मिली है। और भी अन्य कारोबार है जो ऑनलाइन के माध्यम से आज भी लाभ ले रहे हैं। ऑनलाइन एजुकेशन को लेकर डीबी न्यूज़ नेटवर्क से बात करते हुए गाजियाबाद के जीडी गोएनका पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल डॉ नेहा शर्मा से जब ऑनलाइन और ऑफलाइन पढ़ने के तरीके को लेकर जब चर्चा की गई तो उन्होंने दोनों के अपने-अपने फायदे बताएं।

डॉ नेहा शर्मा ने अनुकूल प्रभाव को लेकर कहा कि जब स्कूल की छुट्टियां होती है तो हमारा जो शेड्यूल होता है वह कहीं ना कहीं आगे पीछे होने लगता है अगर स्कूल की छुट्टी हो गई तो बच्चा पूरी तरीके से घर पर बैठ जाता है और पढ़ाई से वह कहीं ना कहीं छूट जाता है। ऑनलाइन का एक फायदा यह भी हुआ है कि कहीं ना कहीं हम बच्चों से जुड़े रहते हैं हम बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस लेते हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से हम बच्चों पढ़ाई के लिए प्रेरित करते रहते हैं। उन्होंने कहा कि यह मुझे लगता है कि ऑनलाइन एक बहुत ही अच्छा ऑप्शन है। पहले बच्चा ऑफलाइन में हमसे डिस्कनेक्ट हो जाता था लेकिन ऑनलाइन की आते ही बच्चा हमसे जुड़ा रहता है। ऑनलाइन से एक फायदा और हुआ है जो बच्चा कहीं फेस टू फेस कहने में झिझकता था वह ऑनलाइन एजुकेशन में अब पूरी तरह से हमसे बात कहने में झिझकता नहीं है। ऑफलाइन में बच्चे हमसे पूछ नहीं पाते थे लेकिन ऑनलाइन होने से बच्चों को कुछ भी डाउट होता है तो वह हमसे क्लियर कर लेते हैं।

बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं जो क्लास में नहीं बोल पाते हैं लेकिन वह ऑनलाइन अपने डाउट क्लियर कर देते हैं। पहले बच्चे टीचर से कुछ भी नहीं पूछ पाते थे लेकिन ऑनलाइन के आते ही बच्चे ऑनलाइन जुड़े हैं जिससे वह कहीं ना कहीं टीचर से कोई भी डाउट होने पर उनसे क्वेश्चन करते हैं। टीचर से खुलकर बात कर पाते हैं अपनी परेशानी रखते हैं और ऑनलाइन के माध्यम से टीचर जो भी उपाय होता है उन्हें मदद करने के लिए, वह हम करते हैं। पहले टीचर की मेहनत घर पर पेरेंट्स को नजर नहीं आती थी वह अब ऑनलाइन होने से नजर आती है। ऑनलाइन क्लासेस होने से पेरेंट्स की नजर में टीचर्स की रिस्पेक्ट बड़ी है। कोरोना में ऑनलाइन के आते ही भारत को एक नया कॉन्सेप्ट मिला है।

जब उनसे सवाल किया गया कि वर्तमान में आप ऑनलाइन एजुकेशन के माध्यम से पढ़ने की कितनी हिस्सेदारी समझती हैं। ऑनलाइन माध्यम से बच्चा केवल सुन सकता है और पड़ सकता है इसके अलावा कुछ और नहीं कर सकता है। लेकिन ऑफलाइन पढ़ने के तरीके के कई फायदे बच्चों को मिलते हैं। ऑफलाइन पढ़ने से बच्चों को माहौल मिलता है और देखकर सीखने का मौका भी मिलता है। वहीं ऑनलाइन के आने से प्रतिकूल प्रभाव को लेकर उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि ऑनलाइन के आने से बच्चे लगातार स्क्रीन के सामने रहते हैं और कहीं ना कहीं स्क्रीन से निकलने वाली लाइट उन्हें नुकसान पहुंचाती है। जिससे उनकी आंखों में काफी इफेक्ट पड़ता है। ऑनलाइन के आती ही बच्चे लगातार टेक्नोलॉजी के सामने बैठे रहते हैं। जिसे कहीं ना कहीं टेक्नोलॉजी उन्हें हानि पहुंचती है। बच्चे ऑनलाइन क्लास तो लेते हैं लेकिन वह सुनकर और देखकर पढ़ने में ज्यादा इंटरेस्टेड होते हैं।

वहीं जब उनसे पूछा गया कि शिक्षा के पैटर्न में काफी बदलाव भी देखने को मिला है। तो इस दौरान उन्होंने कहा कि यहां तक सीखने सिखाने की प्रतिक्रिया है तो बदलाव जरूर आना चाहिए हमारे देश में चाहे किसी का आना हो हमारे देश में चाहे नेशनल पॉलिसी का आना हो यह सारे बदलाव जो हैं मैं तो यह कहूंगी के यह अच्छे हैं। बदलाव आना जरूरी है क्या हमारे दिमाग को रखना चाहिए और क्या हमें नहीं रखना चाहिए यह भी जरूरी होता है।

इसी दौरान उन्होंने शिक्षा विभाग को लेकर कहा कि जितनी भी सुविधाएं हैं। स्कूलों से रिलेटेड जो टैक्स है वह काम होना चाहिए। बजट में भी शिक्षा को बेहतर स्थान मिलना चाहिए। जितना अच्छा प्राइवेट स्कूल होता है उतना ही अच्छा सरकारी स्कूल भी होना चाहिए जिससे सभी बच्चों तक शिक्षा सही तरीके से पहुंच सके।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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