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साइकोलॉजी न केवल व्यक्तिगत समृद्धि में मदद करती है, बल्कि समाज को भी बेहतर बनाने का एक महत्वपूर्ण साधन है – गौरव गिल

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गौरव ने अपने काम से यह सिद्ध किया है कि साइकोलॉजी विभिन्न क्षेत्रों में अपना योगदान देकर समाज को सुधारने में सहायक हो सकती है।

नई दिल्ली। मनोविज्ञान के ज्ञान से व्यक्ति अपनी शक्तियों, योग्यताओं, क्षमताओं, रुचियों तथा स्वभाव से परिचित होता है, और उनके समुचित विकास हेतु प्रयास करता है। तथा व्यक्ति अपने व्यवहार-सम्बन्धी कमियों का ज्ञान प्राप्त कर उनमें संशोधन कर सकता है। कुल मिलाकर हमारे मन-मस्तिष्क को पढ़ने एवं हमारे व्यवहार को समझने की क्रिया को हम मनोविज्ञान कहते हैं, हम जो व्यवहार करते हैं उससे भी हमारे भविष्य की कार्यप्रणाली को समझा जा सकता है। यह कहना है साइकोलॉजिस्ट गौरव गिल का, दिल्ली के रहने वाले गौरव बॉडी लैंग्वेज एक्सपर्ट एवं पुलिस ट्रेनर हैं। और एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग एनजीओ मनोबल के लिए काम करते हैं साथ ही साइकोलॉजी सब्जेक्ट के रिसोर्स फैकल्टी भी हैं।

साइकोलॉजिस्ट गौरव गिल का कहना है कि हमारे एक्सप्रेशन और जानवरों के एक्सप्रेशन और फिलिंग्स में काफी कुछ समानताएं हैं। सामान्य तौर पर अगर किसी व्यक्ति को पानी पीता देखकर या कुछ और एक्टिविटी करते हुए हम देखते हैं तो हमें भी प्यास या फिर वह एक्टिविटी करने का मन होने लगता है यह भी मनोविज्ञान है दरअसल हमारे मस्तिष्क में यानी माथे के पीछे मिरर न्यूरॉन्स होते हैं जिससे हम सामने वाले के बिहेव को देखकर उसकी कॉपी करने लगते हैं और ठीक यही समानता जानवरों में भी होती है। गौरव गिल ने अपनी एनजीओ मनोबल के बारे में बताते हुए कहा कि हम मानव तस्करी रोकने का काम करते हैं क्योंकि यह एक बड़ा अपराध है, साइकोलॉजी की मदद से पुलिस ट्रेनिंग के दौरान किसी भी पीड़ित को न्याय दिलाने में मदद मिलती है। क्योंकि साइकोलॉजी से हम व्यक्ति के हाव-भाव और भाव-भंगिमा को पढ़ लेते हैं। जिससे वह व्यक्ति कितना झूठ और कितना सच बोल रहा है यह पता चल जाता है।

तनाव से दूर रहने के दिए टिप्स।
साइकोलॉजिस्ट गौरव गिल का कहना है कि हमारे जीवन में तनाव आ ही जाता है पर तनाव से दूर रहना हमारा प्रबंधन है। तनाव से दूर रहने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है समय का प्रबंधन करना जिसे हम टाइम मैनेजमेंट कहते हैं और किसी भी तरह के दबाव को अपने ऊपर हावी न होने दें, फिजिकल एक्टिविटी को नियमित रूप से करना। मीठा कम खाएं और सबसे महत्वपूर्ण इस दुनिया में हमारी समस्या का सबसे अच्छा हल सिर्फ हमारे पास है। इस पर भरोसा रखें यकीन मानिए हर तनाव से आप दूर रहेंगे।

कभी भी बुरे ख्याल या स्वयं के बारे में बुरा न सोचें।
जब कभी हमारे जीवन में तनाव ज्यादा बढ़ जाता है तब वह अवसाद की श्रेणी में आ जाता है। जिसे सामान्य भाषा में हम डिप्रेशन कहते हैं इसका सबसे बेहतर हल है संवाद, संवाद अपने आप से, अपने परिवार से, अपने मित्रों से। आजकल हर आदमी फोन में ज्यादा व्यस्त है पहले जो हम संवाद घर में करते थे अब वह संवाद काम होता जा रहा है और उस संवाद की जगह वर्चुअल सोशल इंवॉल्वमेंट ने ले ली है। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताएं।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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