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कुछ महिला उद्यमियों सफलता की कहानियाँ… उन्हीं की जुबानी

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नई दिल्ली। कहते हैं जब आप में कुछ करने की ललक और जज्बा हो तो आपको बुलंदियों की ऊंचाइयों तक पहुंचने पर कोई नहीं रोक सकता। ऐसा ही कुछ करके दिखा रहीं हैं आज की महिलाएं, जो घर की जिम्मेदारी के साथ-साथ अपने प्रोफेशनल करियर में भी खासा मुकाम हासिल कर रहीं हैं।

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आईए आपको मिलवाते हैं ऐसे ही कुछ सफल उद्यमी महिलाओं से…

भोपाल से स्कूल डायरेक्टर नीरजा सक्सेना का कहना है कि 2003 में उन्होंने एक बंद हो रहे स्कूल को फिर से शुरू किया और तब से उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में लगातार प्रगति की है। वहीं, फाइनेंशियल एडवाइजर शांभवी दुबे ने बताया कि 2000 में एलआईसी की एजेंसी से अपने करियर की शुरुआत की, जिसके बाद उन्होंने म्यूचुअल फंड और शेयर मार्केट में भी कदम रखा। वही मध्य प्रदेश के गंजबासौदा से एंटरप्रेन्योर और समाजसेवी आरती गर्ग ने अपने सामाजिक कार्यों और व्यावसायिक उपलब्धियों से एक नई मिसाल कायम की है। लायंस क्लब इंटरनेशनल के साथ जुड़कर उन्होंने स्वास्थ्य, नेत्र चिकित्सा, डायबिटीज, और वृक्षारोपण जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

मध्य प्रदेश के भोपाल से शिक्षा के क्षेत्र में अपने कदम बढ़ाते हुए, नीरजा सक्सेना ने 2003 में स्कूल डायरेक्टर बनने का सफर शुरू किया। नीरजा ने बताया कि स्कूल खोलने का विचार उनके मन में काफी पहले से था, जब वह अपने बेटे को स्कूल छोड़ने जाती थीं। उस दौरान उन्होंने शिक्षा की गुणवत्ता और व्यवस्थाओं का बारीकी से अध्ययन किया और मन ही मन एक ऐसे स्कूल की योजना बनाई जिसमें बेहतर सुविधाएं और शिक्षण हो।

नीरजा की दोस्त ने उन्हें 2003 में एक मौका दिया, जब एक स्कूल बंद होने जा रहा था। नीरजा ने इस अवसर को भुनाया और उस बंद हो रहे स्कूल को फिर से शुरू किया। उन्हें इस प्रयास में काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला। इस सफर में उनके पति का उन्हें भरपूर समर्थन मिला, जिससे उन्हें ज्यादा संघर्ष का सामना नहीं करना पड़ा।

आज नीरजा के स्कूल में करीब 200 बच्चे पढ़ रहे हैं और अब तक 2000 से अधिक बच्चे उनके स्कूल से शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। नीरजा अब अपने इस स्टार्टअप को और आगे बढ़ाने की योजना बना रही हैं। वह चाहती हैं कि उन्हें सरकार से मदद मिले ताकि स्कूल में और सुधार हो सके, और गरीब बच्चों को भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सके। उनका उद्देश्य है कि स्कूल की फीस को कम रखा जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे लाभान्वित हो सकें।

 

मध्य प्रदेश के भोपाल से फाइनेंशियल एडवाइजर शांभवी दुबे ने अपने करियर की शुरुआत 30 मार्च 2000 को की थी। उन्होंने बताया कि शुरुआत में उन्होंने एलआईसी की एजेंसी ली थी, क्योंकि उन्हें एक पार्ट-टाइम जॉब की जरूरत थी। शांभवी ने बताया कि वह एक साइंस स्टूडेंट थीं और केमिस्ट्री की ट्यूशन क्लासेस भी लेती थीं। परिवार की आर्थिक स्थिति सही न होने के कारण उन्होंने यह कदम उठाया।

जैसे-जैसे क्लाइंट्स की मांग बढ़ी, उन्होंने अपने फाइनेंस के काम का विस्तार किया और म्यूचुअल फंड और शेयर मार्केट में भी कदम रखा। शांभवी दुबे ने बताया कि अब वे फाइनेंशियल एडवाइजिंग के साथ-साथ एस्ट्रोलॉजी भी सिखा रही हैं और उन्होंने एक हॉस्टल भी शुरू किया है।

मध्य प्रदेश के गंजबासौदा से एंटरप्रेन्योर आरती गर्ग ने अपने सामाजिक कार्यों और एंटरप्रेन्योरशिप के सफर की प्रेरणादायक कहानी साझा की। आरती ने लायंस क्लब इंटरनेशनल के माध्यम से पांच प्रमुख क्षेत्रों – स्वास्थ्य, नेत्र चिकित्सा, डायबिटीज, वृक्षारोपण, और कैंसर से लड़ाई में उल्लेखनीय योगदान दिया है। एक खास केस में उन्होंने एक पांच साल के कैंसर पीड़ित बच्चे के इलाज के लिए फंड जुटाकर उसकी जान बचाई।

सामाजिक कार्यों के साथ-साथ आरती आयुर्वेदिक और ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स के क्षेत्र में भी काम कर रही हैं। वेस्टीज कंपनी के साथ जुड़कर, उन्होंने ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स को गांव-गांव तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है, जहां उनकी 1000 से ज्यादा लोगों की टीम इस मिशन में जुटी है। 2017 से वेस्टीज कंपनी के साथ काम करते हुए, आरती न सिर्फ आर्थिक रूप से सशक्त हुई हैं, बल्कि उन्हें थाईलैंड और अन्य देशों की यात्रा करने का अवसर भी मिला है।

आरती गर्ग ने अपने सामाजिक और व्यावसायिक कार्यों से समाज में एक नई पहचान बनाई है, और आज वह अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई हैं।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

जब पेरेंट्स अपने बच्चों को प्राइमरी स्कूल भेजते हैं, तो उनकी प्राथमिक अपेक्षा होती है कि बच्चों को मजेदार तरीके से सीखने का अवसर मिले। छोटे बच्चों का दिमाग पहले आनंद लेना चाहता है। अगर उन्हें मजा नहीं आएगा, तो वे आगे नहीं बढ़ेंगे। हर बच्चे के अंदर प्रतिभा होती है, जरूरी है हम उसे समझें।

बच्चों के स्कूल जाने से पहले पेरेंट्स की काउंसलिंग होनी चाहिए। यह समझना ज़रूरी है कि आपके बच्चे को क्या चाहिए, और उसी के आधार पर स्कूल का चयन करें। ऐसा स्कूल चुनें जिसमें खुला क्षेत्र हो और स्टाफ बच्चों की समस्याओं को हल करने में सक्षम हो। स्कूल और उसकी फैकल्टी बच्चों को संतुष्ट करने में भी सक्षम होना चाहिए।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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