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रैलियों और वीआईपी मूवमेंट्स से शहरो में यातायात व्यवस्था प्रभावित, लोगों ने मांगी पूर्व सूचना

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कहा एक निर्धारित संख्या में विरोध प्रदर्शन हों… आमजन, स्कूली बच्चों और खासकर एम्बुलेंस का रास्ता किसी तरह के प्रदर्शन, रैली से प्रभावित न हों।

जानिए मध्यप्रदेश के आमजन के मन की बात…

नई दिल्ली। शहरो में आयोजित पॉलिटिकल रैलियों और वीआईपी मूवमेंट्स के चलते शहर के यातायात और जनजीवन पर गंभीर असर पड़ रहा है। डीबी न्यूज नेटवर्क से बातचीत में कई लोगों ने इस मुद्दे पर चिंता जताई, यह कहते हुए कि इन आयोजनों से सड़कों पर जाम की स्थिति उत्पन्न होती है और आम जनता, विशेषकर बच्चों और कामकाजी लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने रैलियों और वीआईपी मूवमेंट्स की पूर्व सूचना और रूट प्लानिंग की सिफारिश की है, जिससे इन समस्याओं को प्रभावी ढंग से हल किया जा सकता है।

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मध्यप्रदेश के भोपाल की रहने वाली निधि परमार जो रिवेरा लेडीज क्लब की सेक्रेटरी भी हैं उन्होंने शहर में रैलियों और सार्वजनिक आयोजनों के कारण होने वाली समस्याओं पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि शहर की सड़कों की क्षमता इतनी नहीं है कि वे बड़ी संख्या में लोगों को संभाल सकें, खासकर जब अन्य इलाकों से भीड़ आती है। चाहे वह राजनीतिक रैली हो या कोई अन्य सार्वजनिक आयोजन, इसका सीधा असर आम जनता पर पड़ता है। एक दिन की रैली से शहर का पूरा ट्रैफिक जाम हो जाता है, जिससे लोगों की दिनचर्या प्रभावित होती है और उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

निधि परमार ने सुझाव दिया कि रैलियों और सार्वजनिक आयोजनों को सीमित किया जाए और इसमें भाग लेने वाले लोगों की संख्या पर भी नियंत्रण रखा जाए। उन्होंने कहा कि प्रत्येक जन प्रतिनिधि के साथ केवल कुछ ही लोगों को आने की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि ट्रैफिक जाम और अन्य असुविधाओं से बचा जा सके। इसके अलावा, शहर में छोटे-छोटे आयोजन किए जाने चाहिए ताकि जनता खुद ही जागरूक हो जाए और किसी भी बड़े आयोजन की आवश्यकता न पड़े। इस तरह, आम जनता को होने वाली समस्याओं को कम किया जा सकता है और शहर की व्यवस्था सुचारू रूप से चल सकती है।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से ही ममता शैलेंद्र अग्रवाल जो की अग्रवाल महिला मंडल की सेक्रेटरी भी हैं, उन्होंने कहा कि अगर समस्याएं सुलझती नहीं हैं, तो प्रदर्शन करना भी जरूरी होता है। लेकिन, जो ये प्रदर्शन होते हैं, उनसे आम जनता को हताशा का सामना करना पड़ता है। ममता शैलेंद्र ने बताया कि अगर कोई व्यक्ति बीमार है और अस्पताल या एंबुलेंस में है, तो प्रदर्शन के कारण उसका निकलना मुश्किल हो जाता है। स्कूल जाने वाले बच्चों के माता-पिता को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। और दफ्तर जाने वाले लोगों को भी परेशानी होती है। उन्होंने प्रशासन और सरकार से अपील की है कि प्रदर्शन के लिए एक निश्चित स्थान तय किया जाए ताकि आम जनजीवन प्रभावित न हो और व्यवस्था बनी रहे।

ममता शैलेंद्र ने सुझाव दिया कि प्रदर्शन में लोगों की संख्या को नियंत्रित किया जाए और हिंसात्मक प्रदर्शन करने वालों पर कड़ी धाराएं लगाई जाएं। उन्होंने कहा कि आजकल के कार्यकर्ताओं में यह होड़ मची हुई है कि वे अपने नेता के सामने कितना अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं और उनके साथ कितने लोग शामिल हो सकते हैं। इसी होड़ के चलते कार्यकर्ता बड़ी संख्या में गाड़ियां लेकर प्रदर्शन करने पहुंच जाते हैं, जिससे बाजार और अन्य सार्वजनिक स्थलों की व्यवस्था बिगड़ जाती है। वीवीआईपी और वीआईपी मूवमेंट को लेकर भी उन्होंने चिंता व्यक्त की और कहा कि इससे आम जनता पर बहुत असर पड़ता है। ऐसे समय में, इमरजेंसी सेवाओं के लिए अलग से व्यवस्था होनी चाहिए ताकि आम जनता को परेशानी का सामना न करना पड़े।

मध्यप्रदेश के ग्वालियर से साइकोलॉजिस्ट काउंसलर नंदिता त्रिवेदी ने पॉलिटिकल रैलियों, धरना-प्रदर्शनों और वीआईपी मूवमेंट्स के कारण होने वाली समस्याओं पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि इन घटनाओं के चलते यातायात बाधित होता है और आम जनता को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बच्चों को स्कूल पहुँचने में देरी होती है, लोग ऑफिस समय पर नहीं पहुंच पाते, और पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी उपलब्ध नहीं होता है। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर ऐसे आयोजनों की जानकारी पहले से दी जाए और रूट पहले से तय कर लिए जाएं, तो आम जनता को परेशानियों से बचाया जा सकता है। नंदिता का मानना है कि जब वीआईपी मूवमेंट्स होते हैं, तो सड़कों पर 20-25 गाड़ियां इकट्ठा हो जाती हैं, जिससे ट्रैफिक जाम हो जाता है और आम लोग प्रभावित होते हैं।

नंदिता त्रिवेदी ने यह भी कहा कि इन रैलियों और मूवमेंट्स के दौरान ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन होता है, जैसे बाइक रैलियों में हेलमेट न पहनना और प्लेटफॉर्म टिकट के बिना रेलवे स्टेशन पर भीड़ लगाना। यह न केवल यातायात नियमों का उल्लंघन है, बल्कि एक गलत संदेश भी देता है। यात्रियों को, कभी-कभी भीड़ के कारण, दूसरी बोगियों में जाकर उतरना पड़ता है। उन्होंने जोर दिया कि वीआईपी और वीवीआईपी को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे भी आम जनता में से ही आए हैं और उन्हें अपनी गतिविधियों से लोगों को असुविधा नहीं पहुंचानी चाहिए। उनका मानना है कि सामाजिक गतिविधियों के दौरान वीआईपी व्यक्तियों को जनता की सहूलियत का ध्यान रखना चाहिए, ताकि कोई भी अनावश्यक परेशानी न हो।

मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर से कंप्यूटर एप्लीकेशन की फैकल्टी, पल्लवी भावेश मिश्रा ने वीवीआईपी और वीआईपी मूवमेंट्स के कारण आम जनता को हो रही परेशानियों पर नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि सर्दियों में एक बार एक मंत्रीजी की रैली के दौरान, हम लोग रास्ते में फंस गए थे। इस दौरान हमने देखा कि एक एंबुलेंस भी ट्रैफिक में फंसी हुई थी, जिसमें एक मरीज था। आधे घंटे बाद जब पूरा काफिला निकला, तब जाकर सड़क खुल पाई। इसी तरह, किसी भी वीवीआईपी के ग्वालियर दौरे के दौरान भी भारी ट्रैफिक जाम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिससे बच्चों को स्कूल से लौटने में एक घंटे तक की देर हो जाती है। पल्लवी ने सुझाव दिया कि अगर वीवीआईपी और वीआईपी मूवमेंट्स के चलते रूट व्यस्त रहेंगे, तो एक दिन पहले जनता को इसकी सूचना दे दी जानी चाहिए ताकि आम लोगों को परेशानियों का सामना न करना पड़े।

पल्लवी भावेश मिश्रा ने इस बात पर भी जोर दिया कि किसी भी वीआईपी शहर में आने से अगर आम जनता परेशान हो तो यह उचित नहीं, वह वीआईपी भी हमारे बीच से ही होते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में राजनीति को अनावश्यक रूप से ज्यादा महत्व दिया जाता है, जबकि विदेशों में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिलता। वहां, जब राजनेता या वीआईपी किसी शहर में आते हैं, तो वे एक आम नागरिक की तरह आते हैं, जिससे आम जनता को कोई परेशानी नहीं होती। पल्लवी का मानना है कि भारत में राजनीति और वीआईपी कल्चर को लेकर जो हाइप क्रिएट की गई है, वह न केवल गैर-जरूरी है, बल्कि यह आम लोगों के लिए भी मुसीबत का सबब बनती है।

मध्यप्रदेश के भोपाल से असिस्टेंट प्रोफेसर राखी शर्मा ने शहर में होने वाले वीआईपी मूवमेंट और रैलियों के कारण आम जनता को होने वाली समस्याओं पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि जब भी भोपाल में कोई वीआईपी मूवमेंट या प्रदर्शन होता है, तो इससे आम लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। बच्चों की स्कूल बसें और एंबुलेंस भी ट्रैफिक जाम में फंस जाती हैं, जिससे मरीजों को अस्पताल पहुंचने में देरी होती है। कई बार बच्चों के एग्जाम के दौरान भी वे स्कूल समय पर नहीं पहुंच पाते हैं, और ऑफिस जाने वाले लोग भी समय पर ऑफिस नहीं पहुंच पाते हैं।

राखी शर्मा का सुझाव है कि अगर कोई भी प्रदर्शन या धरना होता है, तो उसे ऐसे रूट पर नहीं होना चाहिए, जहां अस्पताल, स्कूल, या ऑफिस के रास्ते हों। इन सड़कों को खाली छोड़ देना चाहिए ताकि आम जनता को परेशानियों का सामना न करना पड़े। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी रैली, प्रदर्शन, या वीआईपी मूवमेंट के लिए पहले से ही एक निश्चित संख्या और स्थान तय किए जाने चाहिए, जिससे शहर की व्यवस्था पर ज्यादा असर न पड़े और आम जनजीवन बाधित न हो।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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