ग्वालियर (मध्य प्रदेश)। कला की दुनिया में अपनी विशिष्ट पहचान बना रहे विजुअल आर्टिस्ट हर्षित परिहार ने कहा कि उन्हें पेंटिंग का शौक महज़ दो साल की उम्र से ही था। उनके परिवार ने शुरू से ही उनकी कला को पहचाना और पूरा सहयोग दिया। बचपन में ही डांस, स्पोर्ट्स और आर्ट जैसे कई क्षेत्रों में रुचि होने के बावजूद, परिवार ने उन्हें कला के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। हर्षित ने कहा कि उन्होंने अपने परिवार के इस विश्वास को अपनी मेहनत और लगन से साकार किया। राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उन्होंने पेशेवर रूप से पेंटिंग के क्षेत्र में कदम रखा।
हर्षित परिहार ने बताया कि पिछले पाँच वर्षों में उन्होंने कई राष्ट्रीय आर्ट कैम्पों में भाग लिया, जहाँ वे सबसे कम उम्र के कलाकारों में शामिल रहे। दिल्ली, भोपाल और अन्य शहरों में हुए कैंपों में उनकी कला को खूब सराहा गया। हर्षित बताते हैं कि उनके काम का मुख्य विषय आध्यात्म है, और वे हर विषय को भगवान और मानवता से जोड़ने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूँ कि मेरे चित्रों को देखकर लोग यह महसूस करें कि इसमें अध्यात्म की झलक है, चाहे विषय कुछ भी क्यों न हो।” उन्होंने कई सामाजिक विषयों पर भी चित्र बनाए हैं, जिनमें किन्नर समाज और लोकतंत्र से जुड़ी थीम्स शामिल हैं।
हर्षित का मानना है कि एक सफल कलाकार बनने के लिए गुरुजनों का सम्मान और कड़ी मेहनत सबसे महत्वपूर्ण हैं। वे कहते हैं कि सच्चा कलाकार वही है जो समाज के दर्द और भावनाओं को अपनी कला में उतार सके। भविष्य के अपने सपनों को साझा करते हुए हर्षित ने कहा, “मैं चाहता हूँ कि लोग मेरी पेंटिंग देखकर ही पहचान जाएँ कि यह मेरा काम है — मुझे खुद सामने आने की ज़रूरत न पड़े।” उनकी कला, भावनाओं और आध्यात्म के संगम से समाज में नई दृष्टि देने की कोशिश कर रही है।





