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हर क्षेत्र में सफलता के नए आयाम छू रहीं महिलाएं, समाज को दे रहीं नई दिशा…

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नई दिल्ली। देश के कई शहरों में खराब ट्रैफिक प्रबंधन व्यवस्था के कारण लोगों को रोजाना कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ट्रैफिक जाम के कारण कई बार एंबुलेंस तक जाम में फस जाती है तो कई बार हम अपने ही दैनिक काम के लिए भी देर से पहुंचते हैं। डीबी न्यूज नेटवर्क ने इस मुद्दे पर स्थानीय नागरिकों से बातचीत की, जिसमें उन्होंने अपने चिंताएं और सुझाव साझा किए।

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मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की रहने वाली एंटरप्रेन्योर और सोशल एक्टिविस्ट रचना चौबे ने वर्तमान में भोपाल की ट्रैफिक व्यवस्था और पब्लिक ट्रांसपोर्ट की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि भोपाल में मेट्रो प्रोजेक्ट के चलते ट्रैफिक व्यवस्था में काफी बदलाव आया है, जिससे ट्रैफिक जाम की समस्या बढ़ गई है। हर घर में एक से अधिक गाड़ियाँ होने के कारण, लोग अपनी-अपनी गाड़ी लेकर ऑफिस जाते हैं, जिससे सुबह के समय ट्रैफिक की समस्या और भी गंभीर हो जाती है। इसके साथ ही, पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बंद होने से मिडिल क्लास और लोअर क्लास के लोग, जो नियमित रूप से बसों का उपयोग करते थे, अब यात्रा के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

रचना चौबे ने यह भी सुझाव दिया कि माता-पिता को बच्चों को किसी भी सुविधा देने से पहले उन्हें उसके सही इस्तेमाल के बारे में जानकारी देनी चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर माता-पिता बच्चों को बाइक देते हैं, तो उन्हें बाइक चलाने के नियम, सुरक्षा के उपाय और ओवर स्पीडिंग के खतरों के बारे में भी जागरूक करना चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि दुर्घटनाओं में सड़क की हालत का बहुत बड़ा योगदान होता है। सड़कों पर गड्ढे होने के कारण कई दुर्घटनाएं होती हैं, इसलिए यह जरूरी है कि सड़कों की स्थिति को सुधारने के लिए उचित कदम उठाए जाएं।

भोपाल की ही एक गृहिणी मनीषा संजीव ने ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम को लेकर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि अक्सर लोग ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं करते हैं। रेड लाइट पर रुकने के बजाय लोग उसे जंप करके निकल जाते हैं, जबकि उन्हें ग्रीन लाइट होने तक इंतजार करना चाहिए। ऐसा करने से न केवल वे अपने और दूसरों के लिए खतरा पैदा करते हैं, बल्कि ई-चालान का भी सामना करना पड़ता है। मनीषा ने यह भी कहा कि लोगों को ट्रैफिक नियमों के प्रति और अधिक जागरूक होने की आवश्यकता है ताकि वे सुरक्षित रूप से यात्रा कर सकें।

मनीषा ने टोल टैक्स के महत्व पर भी जोर दिया। उनका मानना है कि टोल टैक्स सड़कों के सुधार और उनके रखरखाव के लिए जरूरी है, खासकर गांवों की सड़कों के लिए। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश की सड़कें पहले से थोड़ी बेहतर हुई हैं, लेकिन जब बारिश का मौसम आता है, तो सड़कों और नदियों में कोई अंतर नहीं रह जाता, सड़कें पानी में डूब जाती हैं, जिससे दुर्घटनाएं होती हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि बारिश से पहले सड़कों की मरम्मत होनी चाहिए ताकि दुर्घटनाओं को रोका जा सके। मनीषा ने कहा कि सरकार को पहले से तैयार रहना चाहिए ताकि समस्याओं के उभरने से पहले ही उनका समाधान हो सके, बजाय इसके कि आपात स्थिति में पहुंचकर प्रतिक्रिया दें।

मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर की रहवासी और कंप्यूटर एप्लीकेशन फैकल्टी पल्लवी भावेश मिश्रा ने ग्वालियर शहर की ट्रैफिक व्यवस्था और सड़क सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं व्यक्त की हैं। उन्होंने कहा कि ग्वालियर में ट्रैफिक व्यवस्था कुछ हद तक सही है, लेकिन कई समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं, जैसे कि आवारा पशुओं का सड़कों पर घूमना। ये आवारा पशु अक्सर सड़कों पर बैठ जाते हैं, जिससे दुर्घटनाएं होती हैं और लोगों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। खासकर बारिश के मौसम में, जब सड़कों पर गड्ढे भर जाते हैं, तो दुर्घटनाओं का खतरा और भी बढ़ जाता है। पल्लवी ने सुझाव दिया कि गायों के लिए एक अलग स्थान बनाया जाए, जहां उन्हें सुरक्षित रूप से रखा जा सके, ताकि वे सड़कों पर न घूमें और हादसों से बचा जा सके। उन्होंने एक हालिया घटना का जिक्र भी किया, जिसमें माधव डिस्पेंसरी के पास एक गाय ने एक बुजुर्ग महिला को टक्कर मार दी, जिससे उनकी मौत हो गई।

इसके अलावा, पल्लवी ने स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि चुनावों के समय पार्षद उम्मीदवार जनता के पीछे-पीछे घूमते हैं और वोट मांगते हैं, लेकिन जैसे ही वे चुनाव जीत जाते हैं, लोगों की समस्याओं को नजरअंदाज कर देते हैं। ग्वालियर के लोगों को अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से अधिक सक्रियता और जवाबदेही की उम्मीद है, खासकर ऐसी समस्याओं को हल करने के लिए जो सीधे जनता की सुरक्षा और भलाई से जुड़ी हैं। पल्लवी का मानना है कि अगर समय पर सही कदम उठाए जाएं तो सड़कों पर होने वाली कई दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।

महाराष्ट्र, मुंबई की एक्चुरियल एनालिस्ट चहक गोयल ने मुंबई की ट्रैफिक व्यवस्था और उससे जुड़ी समस्याओं पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया कि मुंबई में बड़ी संख्या में लोग अपने व्यापार के चलते ट्रैफिक में फंसते हैं, जिससे सड़कें अक्सर जाम रहती हैं। हालांकि, लोकल ट्रेनें मुंबई की लाइफलाइन हैं और वे यात्रियों के लिए एक राहत का साधन हैं, जो उन्हें ट्रैफिक से बचाते हुए जल्दी अपने गंतव्य तक पहुंचाती हैं। चहक का मानना है कि मुंबई में भारी संख्या में लोगों और वाहनों के कारण ट्रैफिक एक आम समस्या बन गई है। उन्होंने यह भी कहा कि मेट्रो निर्माण का काम धीमी गति से चल रहा है, जिससे ट्रैफिक की समस्या और गंभीर हो जाती है। अन्य शहरों की तुलना में मुंबई की ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने में अभी और समय लगेगा।

इसके अलावा, चहक ने मुंबई की बारिश को भी एक बड़ी चुनौती बताया। मुंबई की बारिश जहाँ पानी की आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं जब यह ऑफिस के समय में होती है, तो यह लोगों के लिए एक बड़ा चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर देती है। उन्होंने यह भी कहा कि ट्रैफिक सिग्नल पर अक्सर छोटे बच्चे कुछ बेचने के लिए आ जाते हैं, जिससे उनकी सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। लोग बिना सोचे-समझे खरीदारी करते हैं, जिससे ये बच्चे और अधिक प्रोत्साहित होते हैं। इस स्थिति के लिए न केवल खरीदने वाले लोग जिम्मेदार हैं, बल्कि जो नहीं खरीद रहे हैं, वे भी इस समस्या का हिस्सा हैं, क्योंकि वे इस स्थिति को नजरअंदाज कर रहे हैं। चहक का मानना है कि ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने के साथ-साथ, हमें इन बच्चों की सुरक्षा और उनकी स्थिति में सुधार के लिए भी कदम उठाने चाहिए।

मध्यप्रदेश के ग्वालियर की रंगोली वस्त्रम ऑल इंडिया हैंडलूम साड़ी एंड ड्रेस की फाउंडर आसमा मोहन कलसिया ने शहर की ट्रैफिक व्यवस्था पर चिंता जताई है। उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले ग्वालियर की ट्रैफिक व्यवस्था काफी बेहतर थी, लेकिन अब इसकी हालत बहुत खराब हो गई है। 10-12 साल पहले सड़कों का रख-रखाव सही तरीके से किया जाता था, लेकिन अब सड़कों की स्थिति इतनी खराब है कि सुधार की कोई उम्मीद नज़र नहीं आती। उन्होंने कहा कि 2003-04 में ग्वालियर एक बहुत अच्छा शहर था, जहां लोग आकर रहना पसंद करते थे। शहर का भौगोलिक स्थान भी अहम है, क्योंकि यहां के आसपास कोई बड़ी सिटी नहीं है, और गुना, भिंड, इटावा, मुरैना, और झांसी जैसे जोन से बच्चे पढ़ने के लिए ग्वालियर आते हैं। इसके चलते, ग्वालियर की आबादी में बढ़ोतरी हो रही है और ट्रैफिक की समस्या भी बढ़ती जा रही है।

आसमा ने यह भी बताया कि ग्वालियर की सड़कों की हालत अत्यंत खराब हो चुकी है। पहले सड़कों की स्थिति इतनी जल्दी खराब नहीं होती थी, लेकिन अब एक महीने में ही सड़कों पर गड्ढे बन जाते हैं, जिससे ट्रैफिक में और भी मुश्किलें पैदा होती हैं। शहर की बढ़ती आबादी के साथ-साथ मनी सर्कुलेशन भी बढ़ा है, और बड़ी-बड़ी कॉलोनियों का विकास बिना सही सड़क नेटवर्क के किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ट्रैफिक और पार्किंग को लेकर भी समस्याएँ हैं; बिना पार्किंग के गाड़ी खड़ी करने पर तो फाइन वसूला जाता है, लेकिन सड़कों पर घूमते आवारा पशुओं को हटाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता, जिससे हादसे बढ़ रहे हैं। आसमा ने सवाल उठाया कि पार्किंग से वसूला गया पैसा आखिरकार कहां जा रहा है, और यह भी कहा कि इन पैसों का उपयोग सड़क सुधार और ट्रैफिक दुर्घटनाओं को कम करने में होना चाहिए। जिम्मेदार अधिकारियों को इस दिशा में गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।

मध्यप्रदेश, ग्वालियर शहर की ही एक गृहिणी शिल्पी गुप्ता ने शहर की ट्रैफिक व्यवस्था की गंभीर स्थिति पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि फोर-व्हीलर ड्राइव करते समय उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, क्योंकि शहर में ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं किया जाता है। लोग रेड लाइट जंप करके निकल जाते हैं और बिना हेलमेट के बाइक चलाते हैं, जबकि पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है। केवल कुछ समय के लिए पुलिस सक्रिय होती है, लेकिन शहर के ट्रैफिक की स्थिति इतनी खराब है कि कोई भी त्यौहार आते ही ट्रैफिक प्लान पहले से नहीं बनाया जाता, जिससे लोगों को बहुत परेशानी होती है।

शिल्पी ने यह भी बताया कि ग्वालियर की सड़कों की स्थिति अत्यंत दयनीय है, जिसमें बड़े-बड़े गड्ढे हैं जो दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं और ट्रैफिक जाम की स्थिति पैदा करते हैं। उन्होंने कहा कि आजकल राजनैतिक आयोजन एवं धार्मिक आयोजनों का स्वरूप बदल गया है। कई बार यह आयोजन लोगों के लिए परेशानी का कारण बन जाते हैं। धार्मिक आयोजनों के नाम पर लोग भीड़ लगाते हैं और रातभर फिल्मी गाने बजाते हैं, जिससे यातायात बाधित होता है। शहर की ऐसी स्थिति में ट्रैफिक जाम और दुर्घटनाओं की संभावना अधिक बढ़ जाती है, जिससे आम जनता को बेहद कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

मध्यप्रदेश, ग्वालियर की ही एक गृहिणी डिंपल मल्होत्रा ने शहर की ट्रैफिक व्यवस्था की खराब स्थिति पर चिंता जताई है। उन्होंने बताया कि यहां ट्रैफिक का कोई निश्चित नियम नहीं है, कोई भी कहीं से भी गाड़ी निकाल सकता है, जिससे अक्सर दुर्घटनाएं होती हैं। खासकर रात के समय सड़कों पर हादसों की संख्या बढ़ जाती है, जो चिंता का विषय है।

डिंपल ने यह भी बताया कि शहर में पार्किंग की समस्या गंभीर है। शाम के समय कोचिंग और इंस्टीट्यूट से छुट्टी के बाद बच्चों की भीड़ और सड़क किनारे खड़ी गाड़ियों की वजह से ट्रैफिक जाम की स्थिति बन जाती है। उन्होंने सुझाव दिया कि रेस्टोरेंट और अन्य सार्वजनिक स्थानों के बाहर पार्क की गई गाड़ियों को उठाया जाना चाहिए ताकि ट्रैफिक की समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सके।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

जब पेरेंट्स अपने बच्चों को प्राइमरी स्कूल भेजते हैं, तो उनकी प्राथमिक अपेक्षा होती है कि बच्चों को मजेदार तरीके से सीखने का अवसर मिले। छोटे बच्चों का दिमाग पहले आनंद लेना चाहता है। अगर उन्हें मजा नहीं आएगा, तो वे आगे नहीं बढ़ेंगे। हर बच्चे के अंदर प्रतिभा होती है, जरूरी है हम उसे समझें।

बच्चों के स्कूल जाने से पहले पेरेंट्स की काउंसलिंग होनी चाहिए। यह समझना ज़रूरी है कि आपके बच्चे को क्या चाहिए, और उसी के आधार पर स्कूल का चयन करें। ऐसा स्कूल चुनें जिसमें खुला क्षेत्र हो और स्टाफ बच्चों की समस्याओं को हल करने में सक्षम हो। स्कूल और उसकी फैकल्टी बच्चों को संतुष्ट करने में भी सक्षम होना चाहिए।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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