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डॉक्टर से मॉडल तक का सफर: इंदौर के डॉ. उमेश मंडलोई की प्रेरणादायक कहानी

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इंदौर के रहने वाले और एम्स दिल्ली के पूर्व रेजिडेंट डॉक्टर, डॉ. उमेश मंडलोई ने न केवल चिकित्सा क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है, बल्कि फैशन की दुनिया में भी बेहतरीन मुकाम हासिल किया है। एक ओर जहां वे इंदौर के सरकारी अस्पताल में मेडिकल ऑफिसर के रूप में कार्यरत हैं और खुद का मल्टीस्पेशलिटी डे-केयर सेंटर चला रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वह देश के बड़े-बड़े फैशन शो में शो स्टॉपर बनकर रैंप पर जलवा बिखेरते नज़र आते हैं। डॉक्टर उमेश का मानना है कि मेडिकल प्रोफेशन जितना चुनौतीपूर्ण है, उतना ही मुश्किल फैशन की दुनिया में समय, ऊर्जा और लुक को मैनेज करना भी है।

डॉ. मंडलोई का मॉडलिंग करियर एक दिलचस्प मोड़ पर शुरू हुआ, जब उन्होंने दिल्ली एम्स में आयोजित Pulse फेस्टिवल के दौरान फैशन शो में हिस्सा लिया। वहाँ की परफॉर्मेंस ने कई डिज़ाइनर्स और कोरियोग्राफर्स का ध्यान खींचा और यहीं से उनके मॉडलिंग करियर की नींव रखी गई। इसके बाद उन्होंने टाइम्स फैशन वीक, एशियन फैशन वीक और लॉट्स ऑफ ट्रेंड्स जैसे प्रतिष्ठित फैशन शोज़ में भाग लिया, जहाँ उनकी प्रतिभा और व्यक्तित्व को खूब सराहा गया। मेडिकल ड्यूटी के सख़्त समय-सारणी के बीच मॉडलिंग और फोटोग्राफी जैसी क्रिएटिव फ़ील्ड को बैलेंस करना, डॉ. उमेश की बहुआयामी क्षमताओं को दर्शाता है।

वे न सिर्फ मॉडलिंग में शो स्टॉपर के रूप में नज़र आए हैं, बल्कि प्रमोशनल एक्टिविटीज, ब्रांड शूट्स और कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स के कैंपेन का भी चेहरा बन चुके हैं। भविष्य में वे एफएक्स (फैशन एक्सीलेंस) के शिखर तक पहुँचना चाहते हैं, साथ ही मेडिकल सेवा को भी अपनी प्राथमिकता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। डॉ. उमेश मानते हैं कि समय का बेहतर प्रबंधन ही सफलता की कुंजी है — चाहे वो मरीजों की सेवा हो, रैंप पर चलना हो या ज्योतिर्लिंगों की यात्रा करना। वे आज की युवा पीढ़ी के लिए एक आदर्श बनकर उभर रहे हैं, जो यह साबित करते हैं कि एक इंसान एक साथ कई क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल कर सकता है।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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