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पर्यावरण की रक्षा करना केवल एक जिम्मेदारी ही नहीं, बल्कि यह हमारा मौलिक कर्तव्य है।

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इस संदर्भ में जब हमनें पर्यावरण मित्रों से बात की तो उनका क्या कहना था, आपको बताते हैं।

पर्यावरण की रक्षा करना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी और कर्तव्य भी।

मध्यप्रदेश के ग्वालियर की रहने वाली पर्यावरणविद चंचल गोयल ने कहा कि वर्तमान में पर्यावरण का मुद्दा सबसे अहम होना चाहिए। कोविड के दौरान हमने देखा कि जब गाडियां और फैक्ट्रियां बंद थीं और एयर कंडीशनर नहीं चल रहे थे, तो तापमान 42-46 डिग्री से गिरकर 35-36 डिग्री तक पहुंच गया था। इससे हमें एहसास हुआ कि पर्यावरण संरक्षण कितना जरूरी है। हमें हर बार सरकार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझकर पर्यावरण की रक्षा करनी होगी।

हमने एक अभियान शुरू किया है जिसमें लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि यदि आपके घर में एक एयर कंडीशनर है, तो आपको 10 पेड़ लगाने चाहिए, और दो एयर कंडीशनर हैं, तो 20 पेड़ लगाने चाहिए। पेड़ सिर्फ लगाना ही नहीं, बल्कि उनकी देखभाल भी करनी है। मैंने अपने फार्म हाउस पर कई पेड़ लगाए हैं और उनकी देखभाल की है, लेकिन बहुत से लोग इसके प्रति जागरूक नहीं हैं। इसके लिए जरूरी है कि पहले हम स्वयं जागरूक हो और फिर अपने आसपास के लोगों को भी जागरूक करें। चंचल गोयल पर्यावरणविद के साथ ही दिल्ली पब्लिक स्कूल ग्वालियर की पेरेंट्स टीचर एसोसिएशन की अध्यक्ष एवं ग्वालियर रोटरी इंपीरियल क्लब की ट्रेजरर भी हैं।

पर्यावरण के लिए सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि हर दिन पर्यावरण संरक्षण के साथ शुरू हो।

उत्तरप्रदेश के आगरा शहर की रहने वाली छवी शर्मा जो कि एक मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता, संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सक (सीबीटी), क्लिनिकल हिप्नोथेरेपिस्ट भी हैं। वह कई स्कूलों और एनजीओ के साथ काम कर रही हैं। वह भारतीय सेना के लोगों के साथ भी काम करती रही हैं। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए हम अक्सर केवल एक दिन के लिए ही पर्यावरण या मातृ दिवस पर ध्यान देते हैं। “केयर” शब्द का असली मतलब हम भूल चुके हैं। सोशल मीडिया के कारण हम दिखावे में लग गए हैं। लोग सोशल मीडिया पर फोटो डालने के लिए पेड़ तो लगाते हैं, लेकिन उनकी देखभाल नहीं करते, जिससे वे सूख जाते हैं। हमें सबसे पहले अपनी सोच बदलनी होगी। अगर हम बदलाव चाहते हैं, तो इसकी शुरुआत हमें खुद से करनी होगी।

लोग गंगा माँ की पूजा करते हैं, लेकिन उसे गंदा भी करते हैं। विदेशों में नदियाँ हमसे ज्यादा साफ हैं। लोग अक्सर सोचते हैं कि उनके अकेले से क्या फर्क पड़ेगा। जब तक हम अंदर से नहीं बदलेंगे, बदलाव संभव नहीं है। आज के वक्त की जरूरत है की सब मिलकर इस विषय को पहले समझें और इस पर काम करें, नहीं तो आने वाले समय में स्तिथि बेहद चिंताजनक होगी।

जागरूकता के बिना बदलाव संभव नहीं, पर्यावरण के लिए हर दिन काम करना चाहिए।

मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर की पर्यावरण मित्र नीतू बंसल जो पर्यावरण दूत फाउंडेशन की सदस्य भी हैं, उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को हर दिन एक नया कदम उठाना चाहिए। सिर्फ एक दिन पर्यावरण दिवस मनाने से कुछ नहीं होगा। हमने एक संस्था शुरू की है जो खाली जगहों पर पौधे लगाती है और उनकी देखभाल करती है। हमें अपने घर पर भी छोटे पौधे लगाने चाहिए और ऐसे पौधों का चयन करना चाहिए जो हमारे स्थानीय प्रजातियों के हों। स्कूलों और कॉलोनियों में जाकर हम लोगों को जागरूक करते हैं कि पौधा कैसे लगाएं और उसकी देखभाल कैसे की जा सकती है।

बच्चों को उनकी पसंद का खाना, कपड़े और गैजेट्स देने के साथ ही हमें उनके भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। जागरूकता के बिना बदलाव असंभव है। पर्यावरण के लिए हमें हर दिन काम करना चाहिए और अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए। कुछ संस्थाएँ केवल लाइक्स और सब्सक्रिप्शन के लिए पौधे लगाती हैं, लेकिन उन्हें मौसम और देखभाल की जानकारी भी होना चाहिए।

कोविड के समय पर्यावरण कितना अच्छा हो गया था, क्योंकि हमने कुछ नहीं किया था। पेड़ों की कटाई और भ्रष्टाचार के कारण पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। जो लोग पर्यावरण के लिए काम करते हैं, सरकार उन लोगों को मेडल तो देती है, लेकिन उनका समर्थन नहीं करती। छोटे एनजीओ और अन्य संस्थाओं को भी सरकार का समर्थन मिलना चाहिए, जिससे पर्यावरण की बेहतर तरीके से रक्षा हो सके। जब जनता जागरूक होती है, तो सरकार भी जागरूक होती है। शुद्ध हवा सभी को चाहिए, चाहे आप प्रकृति से प्रेम करें या न करें।

पर्यावरण को संरक्षित नहीं करने के लिए हमें बच्चों को जागरूक करना जरूरी।

उत्तरप्रदेश के आगरा शहर की रहने वाली चारू अग्रवाल जो पर्यावरणविद के साथ ही एक फार्मा कंपनी की डायरेक्टर भी हैं, उन्होंने कहा कि प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग से पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है। बच्चों को इसके बारे में जानकारी नहीं है। आगरा में ताजमहल के कारण टूरिस्ट बहुत कचरा छोड़ते हैं, खासकर प्लास्टिक की बोतलें, जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है। उन्होंने कहा की हमनें पर्यावरण को संरक्षित करने के उद्देश्य से किसी की मृत्यु के उपरांत उनके परिजनों द्वारा 13 पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करते हैं और हर वर्ष उन पेड़ों को बढ़ते हुए देखकर परिजनों को भी अच्छा लगता हैं। इस तरह की पहल की आज हमारे समाज में जरूरत है।

हमने सरकारी और निजी इलाकों में कई पेड़ लगाए हैं और उनकी देखभाल भी करते हैं। पहले जहाँ चिड़ियों की आवाज सुनाई देती थी, अब वे गायब हो गई हैं। हम सरकारी स्कूलों में बच्चों को तैयार कर रहे हैं, क्योंकि जब तक अगली पीढ़ी जागरूक नहीं होगी, हम अपने पर्यावरण को संरक्षित नहीं कर सकते।

पर्यावरण को संरक्षित करने की जिम्मेदारी हमारी और इसके लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत।

मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर की रहने वाली आभा अग्रवाल जो पर्यावरण मित्र के साथ महाराजा अग्रसेन चेरिटेबल महिला मंडल की अध्यक्ष हैं, उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के बारे में कहा कि हम बच्चों को पर्यावरण की शिक्षा केवल किताबों में दे रहे हैं। पहले के समय में हमारे पूर्वज बच्चों को व्यावहारिक शिक्षा देते थे। बच्चों को पेड़ लगाना और उनकी देखभाल करना सिखाया जाता था। इससे वे बचपन से ही पर्यावरण की रक्षा करना सीख जाते थे। उन्हें अलग से कोई प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती थी। उन दिनों हमें न तो एयर कंडीशनर की जरूरत होती थी, न ही पंखों की, क्योंकि पेड़ों की घनी छांव अपने आप वातावरण को ठंडा रखती थी। आजकल सरकार बड़े-बड़े पेड़ काटकर सड़कें बना रही है। जो सौ-सौ साल पुराने पेड़ थे, वे अब निर्माण के कारण समाप्त हो रहे हैं। जितने पेड़ काटे जा रहे हैं, उसके मुकाबले दस गुना अधिक पेड़ लगाए जाने चाहिए।”

उन्होंने कहा की हमारे पर्यावरण को संरक्षित करने की जिम्मेदारी भी हमारी होना चाहिए और इसके लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है।

बारिश के मौसम में अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाना चाहिए।

मध्यप्रदेश के ग्वालियर से सुमन खंडेलवाल जो पर्यावरण मित्र के साथ भारत विकास परिषद में महिला सहभागिता प्रमुख भी हैं, उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के बारे में कहा कि अब हमारे सामने जगह की बड़ी समस्या है, जगह बहुत कम बची है, लेकिन जहां भी जगह है, वहां अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए। वृक्षारोपण के साथ-साथ उनकी देखभाल भी जरूरी है। बारिश के मौसम में अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाने चाहिए। हर किसी को अपने कचरे की जिम्मेदारी खुद लेनी होगी। कहीं भी घूमने जाते समय कचरा नदी या पहाड़ों पर नहीं फेंकना चाहिए, बल्कि अपने पास रखकर डस्टबिन में डालें। घर पर भी कचरे को सही तरीके से डस्टबिन में रखें और कबाड़ी वाले को दें। इससे नालियां जाम नहीं होंगी और पशु भी प्लास्टिक नहीं खा सकेंगे। यह समस्या हमारे हाथों में है और हमें इसे मिलकर हल करना होगा।

उन्होंने कहा कि धरती हमारी माता है, और वातावरण का तापमान बढ़ता जा रहा है। हमें गर्मी और पानी की कमी से जूझना पड़ रहा है। इसलिए, हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए। और इसके लिए अपने साथियों को भी प्रेरित करना चाहिए।

पानी बचाएं, अधिक पेड़ लगाएं, प्लास्टिक का उपयोग कम करें और कागज को भी बचाएं क्योंकि कागज पेड़ों से बनता है।

मध्यप्रदेश के ग्वालियर से ही मनीषा बंसल जो पर्यावरणविद के साथ मध्यप्रदेश चैंबर ऑफ कॉमर्स की मेंबर भी हैं। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के बारे में कहा पर्यावरण को संरक्षित करना अब हमारे लिए अनिवार्य हो गया है। तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है, इसलिए हमें अधिक पेड़ लगाना चाहिए। पानी की बर्बादी भी कम से कम होनी चाहिए। हमें उतना ही पानी इस्तेमाल करना चाहिए जितनी आवश्यकता है। आरओ का वेस्ट वाटर हमें पौधों में डालना चाहिए। ऐसे पौधे लगाएं जो कम पानी में भी जीवित रह सकें। पेड़ों के काटने से तापमान बढ़ रहा है और पानी की कमी हो रही है। पर्यावरण दिवस पर हमने कई पेड़ लगाए और पानी के लिए प्याऊ लगाए हैं। लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि पानी बचाएं, अधिक पेड़ लगाएं, प्लास्टिक का उपयोग कम करें और कागज को भी बचाएं क्योंकि कागज पेड़ों से बनता है। हमें ऐसी चीजें इस्तेमाल करनी चाहिए जो रीसायकल हो सकें। अगर पर्यावरण गंदा होगा, तो हर चीज को नुकसान पहुंचेगा, खासकर हमारे आने वाली पीढ़ी को बहुत नुकसान होगा। इसलिए जरूरी है पर्यावरण के संरक्षण के प्रति जागरूक होना और सभी को जागरूक करना।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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