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महिलाएं हर क्षेत्र में बना रही हैं नई मिसाल, किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं महिलाएं : जानिए… महिलाओं की संघर्ष से सफलता तक की प्रेरणादायक यात्रा

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नई दिल्ली। आजकल की महिलाएं पुरुषों से काफी आगे निकल चुकी हैं। हर क्षेत्र में उनकी पहचान बन चुकी है और वो न केवल अपने सपनों को साकार कर रही हैं, बल्कि समाज में भी अपनी एक मजबूत जगह बना रही हैं। आज हम आपको उन महिलाओं से मिलवाएंगे जिन्होंने अपनी जर्नी के दौरान संघर्ष, समर्पण और मेहनत से सफलता की ऊँचाईयों को छुआ है। डीबी न्यूजनेटवर्क से बातचीत करते हुए, इन महिलाओं ने अपनी प्रेरणादायक यात्रा को हमारे साथ साझा किया है। आइए जानते हैं उनके संघर्ष और सफलता की कहानी।

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मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की रहने वाली अरुणा नावलेकर ने अपनी बुनाई के शौक को न केवल अपनी पहचान बनाया, बल्कि इसे “थैरेपी” के रूप में अपनाकर अपनी जिंदगी को नया मोड़ दिया। एक पूर्व शिक्षिका और 60 वर्ष की अरुणा ने अपने रिटायरमेंट के बाद बुनाई को पेशा बनाया और आज उनकी बनाई स्वेटरों की डिमांड अमेरिका, कैलिफोर्निया, मुंबई, दिल्ली, पुणे, बैंगलोर जैसे स्थानों तक पहुंच चुकी है।

कैसे शुरू हुआ सफर?
अरुणा को बचपन से ही बुनाई का शौक था। अपनी नौकरी और पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते उन्होंने इस शौक को कभी गंभीरता से नहीं लिया। जब उनके बच्चे बड़े हो गए और खाली समय बढ़ा, तो उनकी बेटी अपूर्वा पाटिल जो बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं, उन्होंने उन्हें प्रेरित किया कि वे अपना शौक पूरा करें। अपूर्वा ने कहा, “मम्मी, आप बुनाई शुरू करें। इससे आपका समय भी अच्छा गुजरेगा और तबियत भी ठीक रहेगी।” अरुणा ने भी अपूर्वा का कहा मानकर अपनी इस यात्रा की शुरुवात की। हमनें जब अपूर्वा से इस बारे में बात की तो उनका कहना था। जब माता-पिता हमें बचपन से लेकर बड़े होने तक बल्कि संपूर्ण जीवन ही हमारी खुशी का ख्याल रखते हैं तो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि हम उनकी हर खुशी का ख्याल रखें।

बच्चों के स्वेटरों की खासियत
अरुणा छोटे बच्चों के लिए खास स्वेटर बनाती हैं, जिनकी उम्र नवजात से 10 साल तक होती है। हर स्वेटर को बुनने में 5-7 दिन लगते हैं। उनके डिज़ाइन अनोखे और कस्टमाइज्ड होते हैं, जिन्हें वे खुद तैयार करती हैं या कभी-कभी इंटरनेट से प्रेरणा लेती हैं।

डिमांड और काम का विस्तार
शुरुआत में उन्होंने अपने घर के बच्चों के लिए स्वेटर बनाए, जो लोगों को इतने पसंद आए कि ऑर्डर्स आने लगे। धीरे-धीरे उनका काम इतना बढ़ गया कि उन्हें कई बार ऑर्डर्स मना भी करने पड़ते हैं। उन्होंने बताया, “मेरे स्वेटर अमेरिका और कैलिफोर्निया तक गए हैं। भारत में भी मुंबई, पुणे, दिल्ली और बैंगलोर जैसे बड़े शहरों से ऑर्डर्स आते हैं।”

स्वास्थ्य और मानसिक शांति का जरिया
अरुणा बताती हैं कि बुनाई उनके लिए सिर्फ एक काम नहीं, बल्कि थैरेपी है। “जब मैं बुनाई करती हूं, तो मेरा दिमाग शांत रहता है। इससे मेरी तबियत भी ठीक रहती है, और मैं खुश महसूस करती हूं।”

घर से ही चलने वाला बिज़नेस
अरुणा अपने घर से ही यह काम करती हैं। यह बिज़नेस छोटा जरूर है, लेकिन उनकी मेहनत और कला ने इसे बड़ी पहचान दिलाई है। आज उनकी स्वेटरें देश-विदेश के कई परिवारों का हिस्सा बन चुकी हैं।

अंतराष्ट्रीय पहचान और बेटी का सहयोग
अरुणा अपनी बेटी अपूर्वा के सहयोग का जिक्र करते हुए कहती हैं, “अपूर्वा ने मुझे आगे बढ़ने का हौसला दिया। वह मेरे साथ वूल खरीदने जाती है और हर कदम पर मुझे प्रेरित करती है।”

आने वाले समय की योजनाएं
अरुणा अब केवल बच्चों के स्वेटरों पर फोकस कर रही हैं। उनका कहना है, “बड़ों के लिए स्वेटर बनाने का समय नहीं मिलता, क्योंकि बच्चों के लिए ऑर्डर्स इतने ज्यादा हैं।”

भोपाल की अरुणा नावलेकर की कहानी प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने साबित किया कि उम्र और रिटायरमेंट के बाद भी एक नया अध्याय शुरू किया जा सकता है, जहां मेहनत और लगन से कुछ भी संभव है।

मध्यप्रदेश के भोपाल की शालू कोटवानी: ‘एस3 क्रिएशन कस्टमाइज्ड किचन’ से अंतरराष्ट्रीय पहचान
भोपाल की न्यूमरोलॉजिस्ट रूही राय की प्रेरणादायक यात्रा

मध्य प्रदेश के भोपाल की रहने वाली शालू कोटवानी, जो ‘एस3 क्रिएशन कस्टमाइज्ड किचन की फाउंडर हैं, ने अपनी प्रेरणादायक यात्रा साझा की। कोरोना महामारी के दौरान बीमार पड़ने और डिप्रेशन का सामना करने के बाद, उन्होंने खुद को संभालते हुए अपने कुकिंग टैलेंट को व्यवसाय में बदल दिया।

शुरुआत कैसे हुई?
शालू बताती हैं, “कोरोना के समय मैं बीमार हो गई थी और डिप्रेशन में चली गई थी। मेरी एक सहेली ने मुझे सलाह दी कि मैं अपनी कुकिंग स्किल का उपयोग करूं। उसी दिन मुझे पहला ऑर्डर मिला। किचन में लंबे समय बाद काम करके मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ। उसके बाद लगातार ऑर्डर मिलने लगे और मैंने इसे करियर के रूप में अपना लिया।”

शालू इससे पहले एक हाउसवाइफ थीं, लेकिन उनका बचपन से ही कुकिंग में इंट्रेस्ट था। उन्होंने इसे अपने व्यवसाय में बदलते हुए अपने किचन को ‘एस3 क्रिएशन कस्टमाइज्ड किचन’ का नाम दिया।

सामाजिक और पारिवारिक चुनौतियाँ
अपने सफर के दौरान शालू को कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। वह कहती हैं, “कुछ लोगों ने कहा कि ₹200 के लिए इतना छोटा काम क्यों कर रही हो, लेकिन मेरे परिवार, दोस्तों, और एक फूड लवर ग्रुप ने मेरा पूरा साथ दिया। उनका सपोर्ट मेरे लिए बहुत मायने रखता है।”

स्थानीय से अंतरराष्ट्रीय तक का सफर
शुरुआत में शालू ने केवल भोपाल में सेवाएं दीं, लेकिन आज उनका कस्टमाइज्ड खाना अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुका है। वह कहती हैं, “लोग मुझसे हेल्दी और ऑर्गेनिक फूड ऑर्डर करते हैं। थेपले, नमकीन, मिठाइयां, और हेल्दी कुकीज़ जैसे आइटम्स मेड-टू-ऑर्डर बनाकर भेजती हूँ। अब्रॉड से भी ऑर्डर आते हैं, खासतौर पर बच्चों और हेल्थ-कॉन्शस ग्राहकों के लिए।”

भविष्य की योजना: कैफे का सपना
शालू का सपना है कि वह एक ऐसा कैफे शुरू करें, जो होमली फील वाला खाना प्रोवाइड करे। वह कहती हैं, “मैं चाहती हूँ कि भोपाल में पढ़ाई या नौकरी के लिए आने वाले युवाओं को घर जैसा ताजा और हेल्दी खाना मिले। मेरा उद्देश्य है कि हर वर्ग के लोग इसे अफोर्ड कर सकें।”

स्वयं का प्रयास और विस्तार की योजना
वर्तमान में शालू अकेले ही ऑर्डर तैयार करती हैं। वह केवल उतने ही ऑर्डर लेती हैं, जितना एक दिन में पूरा कर सकें। वह आगे कहती हैं, “मैं चाहती हूँ कि भविष्य में और लोगों को अपने साथ जोड़ूं, खासकर महिलाओं को, ताकि वे भी अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। एक पब्लिक प्लेस पर अपना कैफे या रेस्टोरेंट खोलने से ज्यादा लोगों तक हेल्दी फूड पहुँच सकेगा।”

परिवार का सहयोग और व्यक्तिगत संतुष्टि
शालू के परिवार और दोस्तों ने हमेशा उनका साथ दिया। वह कहती हैं, “कुछ लोग हमेशा होते हैं जो कहते हैं कि इतना छोटा काम क्यों करती हो। लेकिन जब आप अपने काम से खुश रहते हैं, तो समय मायने नहीं रखता। मुझे रात के दो-दो बजे तक काम करके भी संतोष मिलता है।”

शालू कोटवानी की कहानी यह दिखाती है कि अगर आत्मविश्वास और मेहनत हो, तो छोटे से काम को भी बड़ी सफलता में बदला जा सकता है। उनका ‘एस3 क्रिएशन कस्टमाइज्ड किचन’ अब हेल्दी और होमली फूड के लिए जाना जाता है, और यह सफर आगे भी जारी रहेगा।

ग्वालियर, मध्य प्रदेश की निकिता शर्मा, जो “स्ट्रिंग स्टोरीज बाय निकिता” की फाउंडर हैं, ने प्राइवेट जॉब से जुड़ी अस्थिरता को देखते हुए खुद का व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया। और कोविड-19 के बाद जॉब प्रोफाइल में आने वाली समस्याओं को समझते हुए, निकिता ने अपना फ्यूचर बनाने के लिए एम्ब्रॉयडरी और फैशन की दुनिया में कदम रखा।

शुरुआत कैसे हुई
निकिता ने बताया, “मेरी शादी को 7 साल हो गए हैं। शुरुआती कुछ सालों में ही खुद के लिए कुछ करने की चाहत ने मुझे प्रेरित किया। मैंने जॉब की, लेकिन कोविड-19 के बाद मुझे एहसास हुआ कि प्राइवेट सेक्टर में स्थिरता की कमी है। तब मैंने अपना कुछ करने का निर्णय लिया।”

निकिता का एम्ब्रॉयडरी और क्राफ्ट में शुरू से ही इंट्रेस्ट था। उन्होंने भारत की पारंपरिक कला को अपनाते हुए एम्ब्रॉयडरी के जरिए होम डेकोर आइटम्स बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे यह काम बढ़ा और उन्होंने साड़ियों, सूट्स और आउटफिट्स पर एम्ब्रॉयडरी करना शुरू किया।

“स्ट्रिंग स्टोरीज बाय निकिता” का सफर
निकिता का बुटीक अब साड़ियों, सूट्स और अन्य आउटफिट्स के लिए जाना जाता है। वह अपने बुटीक के जरिए हर उम्र की महिलाओं और लड़कियों को फैशनेबल और यूनिक डिजाइन उपलब्ध कराती हैं।

निकिता कहती हैं, “मैं कोशिश करती हूं कि मेरे बुटीक के कपड़े किफायती हों। रेडीमेड कपड़ों की तुलना में, मैं अपने कपड़ों की ड्यूरेबिलिटी और फिनिशिंग पर ज्यादा ध्यान देती हूं।”

रोजगार के अवसर और महिलाओं के लिए खास
निकिता का सपना है कि वह महिलाओं को रोजगार का बेहतर अवसर दें। “आने वाले 2 सालों में, मैं चाहती हूं कि मेरे बुटीक में कई महिलाएं काम करें। अगर मैं महिलाओं को रोजगार दे पाऊं, तो मुझे बहुत खुशी होगी।”

फैशन के प्रति ग्वालियर के लोगों की समझ
ग्वालियर जैसे शहर में रेडीमेड कपड़ों का क्रेज ज्यादा है। लेकिन निकिता का मानना है कि लोग धीरे-धीरे कस्टमाइज्ड और यूनिक डिजाइन को समझने लगे हैं। वह कहती हैं, “यहाँ के लोगों को फैशन और फैब्रिक की ड्यूरेबिलिटी के बारे में जागरूक करना जरूरी है। मैं अपनी तरफ से यह कोशिश करती हूं कि लोगों को अच्छी क्वालिटी के कपड़े और डिजाइन मिले।”

आने वाले वर्षों की योजना
निकिता का बुटीक अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन वह इसे एक बड़े स्तर पर ले जाने की योजना बना रही हैं। उनका लक्ष्य न केवल खुद का व्यवसाय बढ़ाना है, बल्कि ग्वालियर और अन्य क्षेत्रों में महिलाओं को रोजगार के अवसर प्रदान कराना भी है।

निकिता शर्मा की यह कहानी हमें सिखाती है कि चुनौतियों को अवसर में बदलकर अपने सपनों को पूरा किया जा सकता है। “स्ट्रिंग स्टोरीज बाय निकिता” न केवल ग्वालियर में बल्कि अन्य शहरों में भी पहचान बना रहा है।

मध्यप्रदेश के भोपाल से न्यूमरोलॉजिस्ट रूही राय ने अपनी कहानी साझा करते हुए बताया कि उन्होंने कोरोना के समय को एक अवसर के रूप में अपनाया। वह कहती हैं, “जब सभी लोग घर पर थे, मुझे ऑनलाइन कोर्स की एक शानदार संभावना दिखी। पहले न्यूमरोलॉजी ऑफलाइन पढ़ाई जाती थी, लेकिन उस समय ऑनलाइन सर्टिफाइड कोर्स उपलब्ध हुआ। मैंने बिना वक्त गंवाए दिल्ली से एक प्रॉपर सर्टिफिकेशन कोर्स के लिए एनरोल कर लिया। मैंने इस दौरान गहन अध्ययन किया और इसे सही तरीके से समझा।”

शुरुआत में देरी का अफसोस
रूही का कहना है कि न्यूमरोलॉजी में उनका शुरू से ही रुचि थी, लेकिन उन्हें इस विषय के औपचारिक कोर्स के बारे में देर से पता चला। “मुझे अफसोस है कि मैंने इसे 40 की उम्र में शुरू किया। काश, मुझे इसके बारे में पहले पता होता। लेकिन अब मैं इसे पूरी गंभीरता और जुनून के साथ सीख और सिखा रही हूँ।”

न्यूमरोलॉजी का वैज्ञानिक और प्राचीन महत्व
न्यूमरोलॉजी के बारे में रूही बताती हैं, “यह अंक ज्योतिष विज्ञान है, जो हमारी प्राचीन सभ्यता से जुड़ा है। इसमें नंबर्स के माध्यम से व्यक्तित्व और जीवन को समझा जाता है। यह नौ ग्रहों की ऊर्जा और उनके प्रभाव का प्रतिनिधित्व करता है। मैं ‘रमन विद्या’ और अन्य संबंधित कोर्स भी कर रही हूँ। डेट ऑफ बर्थ के आधार पर जब मैं सटीक भविष्यवाणियां करती हूँ, तो लोग हैरान रह जाते हैं।”

इस क्षेत्र की बढ़ती लोकप्रियता
रूही ने न्यूमरोलॉजी की बढ़ती मांग का जिक्र करते हुए कहा, “ऑनलाइन क्लासेज में 2000 से अधिक लोग एक साथ जुड़ते हैं। यह दर्शाता है कि आने वाले 2-3 सालों में न्यूमरोलॉजी की जागरूकता और अधिक बढ़ने वाली है। हर कोई अब अपने मुलांक और भाग्यांक के बारे में जानना चाहता है। मुझे लगता है कि भविष्य में हर तीसरे या चौथे घर में एक न्यूमरोलॉजिस्ट जरूर होगा।”

महिलाओं के लिए चुनौतियाँ
एक महिला प्रोफेशनल के तौर पर आने वाली कठिनाइयों के बारे में रूही कहती हैं, “खुद को पेशेवर रूप से स्थापित करना आसान नहीं है। खासकर सोशल मीडिया पर, जहां काम के उद्देश्य से आने पर भी लोग निजी संदेशों और नकारात्मक पब्लिसिटी से परेशान करते हैं। बीइंग ए वर्क-ओरिएंटेड वुमन, हमें स्पष्ट करना पड़ता है कि हम केवल काम के लिए यहां हैं। ये चुनौतियाँ लगभग हर महिला का सामना करती हैं।”

भविष्य की योजनाएँ
आने वाले समय में रूही का उद्देश्य है कि न्यूमरोलॉजी को और अधिक विश्वसनीय और लोकप्रिय बनाया जाए। “मेरा लक्ष्य सिर्फ परिणाम-आधारित काम करना है। मैं चाहती हूँ कि न्यूमरोलॉजी की विश्वसनीयता और प्रभाव को लोग समझें और इसे अपनाएं। अगले 4-5 सालों में, मैं इस क्षेत्र में जागरूकता को बढ़ाना चाहती हूँ और इसे व्यापक रूप से स्वीकार्य बनाना चाहती हूँ।”

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

जब पेरेंट्स अपने बच्चों को प्राइमरी स्कूल भेजते हैं, तो उनकी प्राथमिक अपेक्षा होती है कि बच्चों को मजेदार तरीके से सीखने का अवसर मिले। छोटे बच्चों का दिमाग पहले आनंद लेना चाहता है। अगर उन्हें मजा नहीं आएगा, तो वे आगे नहीं बढ़ेंगे। हर बच्चे के अंदर प्रतिभा होती है, जरूरी है हम उसे समझें।

बच्चों के स्कूल जाने से पहले पेरेंट्स की काउंसलिंग होनी चाहिए। यह समझना ज़रूरी है कि आपके बच्चे को क्या चाहिए, और उसी के आधार पर स्कूल का चयन करें। ऐसा स्कूल चुनें जिसमें खुला क्षेत्र हो और स्टाफ बच्चों की समस्याओं को हल करने में सक्षम हो। स्कूल और उसकी फैकल्टी बच्चों को संतुष्ट करने में भी सक्षम होना चाहिए।

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चंचल गोयल, अभिभावक, ग्वालियर, एमपी

मैंने अपने 15 साल के शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर देखा है कि प्राइमरी टीचर्स की बॉन्डिंग बच्चों के साथ बहुत अच्छी होती है।  यह उम्र के बच्चे अपने टीचर्स को फॉलो करते हैं और पेरेंट्स से भी लड़ जाते हैं। इसलिए, स्कूल और टीचर्स पर बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को खुश रखें।

अगर बच्चा अच्छा परफॉर्म करने लगे, तो पेरेंट्स उसे अपना हक मान लेते हैं। पेरेंट्स को विश्वास करना चाहिए कि जिस स्कूल में उन्होंने दाखिला कराया है, वह बच्चों के लिए सही है। लेकिन अपने बच्चों का रिजल्ट किसी और के बच्चे से कंपेयर नहीं करना चाहिए। आजकल के पेरेंट्स समझदार हैं और जानते हैं कि बच्चों को कैसी शिक्षा देनी है। किसी भी समस्या के लिए वे सीधे टीचर से बात कर सकते हैं, जिससे समस्या का समाधान जल्दी हो सके।

प्रियंका जैसवानी चौहान, हेड मिस्ट्रेस, बिलाबोंग हाई इंटरनेशनल स्कूल, ग्वालियर, एमपी

जुलाई का सत्र बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सबसे बड़ा वेकेशन होता है।  पेरेंट्स को बच्चों की लास्ट सेशन की पढ़ाई का रिवीजन कराना चाहिए ताकि वे आउट ऑफ रेंज न हो जाएं। शुरुआती अध्याय बच्चों की रुचि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।

आगे वे कहते हैं कि प्रेशर का नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव होते हैं। आज की युवा पीढ़ी में 99% लोग बिजनेस और स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं। पढ़ाई को लेकर बच्चों पर दबाव डालना गलत है, लेकिन भविष्य के लिए यह लाभदायक हो सकता है। बच्चों को गैजेट्स का सही उपयोग आना चाहिए, लेकिन उन पर पूर्णतः निर्भर होना गलत है।

तुषार गोयल, एचओडी इंग्लिश, बोस्टन पब्लिक स्कूल, आगरा, यूपी

वेकेशंस के दौरान बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह नहीं हटानी चाहिए। स्कूल द्वारा दिए गए प्रोजेक्ट्स को धीरे-धीरे  करने से पढ़ाई का दबाव नहीं बनता। जब पढ़ाई फिर से शुरू होती है, तो बच्चों को अधिक दबाव महसूस नहीं होता। आजकल स्कूल बहुत मॉडर्नाइज हो गए हैं जिससे बच्चों को हेल्दी एटमॉस्फियर और खेल-खेल में सीखने को मिलता है।

एडमिनिस्ट्रेशन को बुक्स का टाइम टेबल सही तरीके से बनाना चाहिए ताकि बच्चों पर वजन कम पड़े। स्कूल में योग और एक्सरसाइज जैसी गतिविधियाँ भी शुरू होनी चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें और उन्हें बैक प्रेशर न हो। टीचर और पेरेंट्स के बीच का कम्यूनिटेशन गैप काम होना चाहिए। बच्चों का एडमिशन ऐसे स्कूल में करें जिसका रिजल्ट अच्छा हो, भले ही उसका नाम बड़ा न हो।

डॉ. नेहा घोडके, अभिभावक, ग्वालियर, एम

बच्चों को पढ़ाई की शुरुआत खेलते-कूदते करनी चाहिए ताकि उन्हें बोझ महसूस न हो। पेरेंट्स की अपेक्षाएं आजकल बहुत बढ़ गई हैं,  लेकिन हर बच्चा समान नहीं होता। बच्चों को अत्यधिक दबाव में न डालें, ताकि वे कोई गलत कदम न उठाएं। वे आगे कहती हैं कि आजकल बच्चे दिनभर फोन का उपयोग करते रहते हैं, और पेरेंट्स उन्हें फोन देकर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। पेरेंट्स को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें कम से कम समय के लिए फोन देना चाहिए।

दीपा रामकर, टीचर, माउंट वर्ड स्कूल, ग्वालियर, एमपी

हमारे स्कूल में पारदर्शिता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल के समय में पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई पर समय कम दे पाते हैं। स्कूल द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों का होमवर्क पेरेंट्स तक पहुँचाया जाता है ताकि वे बच्चों पर ध्यान दे सकें।

पेरेंट्स को बच्चों को गैजेट्स देते वक्त ध्यान रखना चाहिए की वह उसका कितना इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें मोबाइल का कम से कम उपयोग करने देना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के सामने बुक रीड करेंगे तो बच्चा भी बुक रीड करने के लिए प्रेरित होगा।

दीक्षा अग्रवाल, टीचर, श्री राम सेंटेनियल स्कूल, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

अंकिता राणा, टीजीटी कोऑर्डिनेटर, बलूनी पब्लिक स्कूल, दयालबाग, आगरा, यूपी

वर्तमान समय में बच्चों को पढ़ाने की तकनीक में बदलाव आया है, आजकल थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल बेस्ड लर्निंग पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आजकल पेरेंट्स भी पहले से बेहद अवेयर हैं, क्योंकि अब बच्चों के करियर पॉइंट ऑफ व्यू से कई विकल्प हमारे सामने होते हैं जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के साथ प्रॉपर कम्युनिकेट करें।

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